बेटी के सुनहरे क़दम - कविता - सुरेन्द्र सोलंकी

बड़ा प्यारा है ये स्वर छोटे से होंठ गाते हैं जब,
हर कोई दीवाना हो जाता है ये मुस्कुराते हैं जब।
बड़ी प्यारी चाल लगती है, बेटी के सुनहरे क़दम,
छोटे छोटे लड़खड़ाते पाँव आँगन को महकाते हैं जब।
फूलों से भी सुंदर आँगन महकाते हैं,
दौड़ते क़दम इधर उधर जाते हैं जब।
दिल मुस्कुराता है होंठ गुनगुनाते हैं,
दादा पापा काका माँ माँ बोलते हैं जब।
दौड़ते हैं क़दम एक धावक की तरह,
आँगन में पापा की आवाज़ सुनते हैं जब।
घर में कोई नहीं जो सुबह मुस्कान देखने को आतुर न हो,
ख़ुशी के मारे झूम जाते हैं इसे गोद में उठा लेते हैं जब।
प्रतियोगिता सी जंग जीत जाते हैं,
लड़खड़ाती आवाज़ में दादा बोलते हैं जब।
साल एक मुस्कुराता चेहरा,
पहला शब्द माँ बोलता है जब।
नन्हा सा खेलता हुआ मिलता है,
नींद खुलती है प्रभात में सोके जब।
गुड मॉरनिंग बोलते हैं उसको खेलता देख कर,
मुस्कुरा देता है उसका चेहरा हमे देखता है जब।
सारा दिन ख़ुशी से बीतता है हमारा,
सुबह मुस्कुराता चेहरा देख लेते हैं जब।
घर में बिल्ली को देखता है सहम कर मुस्कुरा देता है,
म्याऊँ की कहानी लगवाता है मोबाइल देखता है जब।
बिखेर देता है सहेजे हुए सामान और खिलौनों को,
देखकर ख़ुश हो जाता है रखे इस सामान को जब।
देखकर ज़िद बाँधता है बैट और बॉल को खेलने की,
बिस्तर को ही खेल का मैदान बना लेता जब।
कहत सुरेन्द्र सोलंकी ख़ुशियों से मन झूम जाता है
पापा कहते भाग कर बेटी गोद में चढ़ जाती है जब।

सुरेन्द्र सोलंकी - गोहाना, सोनीपत (हरियाणा)

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