नैनों की भाषा - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"

भाषा नहीं है आसान
दो नैन इसकी पहचान
करते जब इशारे मटक कर
भटका देते, निकाल देते जान।

कुछ शर्मीले, कुछ बदमाश
नैनों के है अलग मिज़ाज
नैनों की भाषा के न अल्फ़ाज़
दो नैना जब मिलते है 
रहता न इनको किसी का लिहाज़।

दिल के एहसास नैन करे 
खुशी में चहके
उत्साह में महके
मदहोशी में बहके
दुख में आँसुओं से भर के
बिन लफ्जों के सब करे बयान।

नैनों की बात 
देती लफ्जों को मात
नैनों की भाषा की
न बोली न जात
नैनों की भाषा
न पहुँचाए अघात
इसकी भाषा से न कोई अज्ञात।

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

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