मुझे मालूम है तेरे यहाँ चरचे नहीं कम हैं
मगर ये सोचना होगा तुझे ख़तरे नहीं कम हैं।
मुबारक हो बुलंदी पर जुड़े रहना ज़मीनों से
परिंदे आसमानों से यहाँ उतरे नहीं कम हैं।
अगर मशरिक में होता है तो मग़रिब याद करता है
मेरे महताब दुनिया में तेरे जलवे नहीं कम हैं।
ज़रूरी है खमोशी भी मगर मैं आज कहता हूँ
वही जीते जियादा हैं जो हँसते नहीं कम हैं।
गुज़रगाहों पे चलते हैं मेरे वो साथ में लेकिन
मेरे अहबाब दुशमन से किसी दरजे नहीं कम हैं।
गुज़ारिश है यही दिल से के ज़ख्मों को हरे रखना
हवादिस साल गुज़रे में यहाँ गुज़रे नहीं कम हैं।
मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)