मेरी हमसफ़र - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

तुम हो मेरी हमसफ़र, तुम हो मेरा प्यार।
यायावर संघर्ष पथ, जीवन  का आधार।।१।। 

स्वाभिमान जीवन्त हो, बिन याचन हो राह।
सुख-दुख के मँझधार में, जीएँ जीवन चाह।।२।।

नैया  मैं  पतवार  तुम, जीवन  सरिता  पार। 
बन अनंत यात्रा पथिक, बन यकीन आधार।।३।।

आरोहण जीवन कठिन, अवरोहण आसान।
जीयें  जग मिहनतकशी, मरें साथ  सम्मान।।४।। 

मैं नभेन्दु  तू चन्द्रिका, मिल  जीवन  आलोक।
जीवन समझो बागवां, कभी खुशी अरु शोक।।४।। 

कृष्ण शुक्ल सम ज़िंदगी, सुख गम का संयोग। 
निष्ठा   हो   संकल्पपथ, नेह  रथी  जग   भोग।।५।।

हम साथी जीवन सफ़र, हम शरीर तुम प्राण।
मैं सिंदूर तुम शक्ति हो, तुम बिन हूँ  निष्प्राण।।६।।

तू  सुष्मा  मैं हूँ  निकुंज, सहें  साथ  संताप।
जीएँ हमदम बन सखी, सुख सुकूँ परीताप।।८।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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