ज्यों-ज्यों पढ़ी, ग़ज़ल आपकी,
नेत्र त्यों-त्यों सजल मेरे होते गये।
ख्याल ही ख्याल में हम यों खोते गये,
आगे पढ़ते गये, और रोते गये।।
शक्ल आइने से अपनी हम मिलाते गये,
खुद से खुद ही अपरिचित होते गये।
नज़्म पढ़ते गये खुद से लड़ते गये,
चेहरा अश्रु-जल सुखाते, भिगोते गये।।
कर्म क्या, कर रहा क्या, सोच खोते गये,
ग़ज़ल-जल से अजल उर को धोते गये।
होश में लौटने की कितनी कोशिश की,
ज्यों-ज्यों पढ़़ते गये, बेहोश होते गये।।
ज़िन्दगी क्या, मौत क्या, प्यार, दुत्कार क्या?
लोभ, मद, मोह क्या, ये समझते गये।
ग़ज़ल-जल से जलन दिल मिटाते गये,
लोग हँसते गये, हम रोते गये।।
ग़ज़ल-जल आपकी हम नहाते गये,
मैल मन में जमा जो, धोते गये।
भला हैं दूर आप, ग़ज़ल तो पास है,
पढ़ते-पढ़ते ही हम पास होते गये।।
समझे थे अब तक कि हम ही बड़े हैं,
ग़ज़ल पढ़ते गये, छोटे होते गये।
समझे थे हम ही हैं अब्बल, प्रबल,
ग़ज़ल पढ़ते गये, अबल होते गये।।
राम प्रसाद आर्य - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)