सफलता - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

न हो साथ कोई 
अकेले बढ़ो तुम,
अमर हो अजर हो 
आगे बढ़ो तुम।

रुको न कहीं पर 
अकेले बढ़ो तुम 
न हो साथ कोई 
अकेले चलो तुम।

माया का वह दीपक 
हमेशा जलेगा,
पतंगा हमेशा वह 
मर कर जिएगा।

उसी रोज की मैं 
भी गाथा हूँ गाता,
न था साथ कोई 
अकेले ब़ढ़ा था।

चरण चूमने को वो 
व्याकुल बड़ी थी,
मगर साथ मांगा 
अकेले चलो तुम।

ना हो साथ कोई 
अकेले चलो तुम,
सफल हो अगर तुम 
चरण चूम लूँगी।

सफर फैसले का
मैं मर कर जीऊँगी,
उसी फासले की 
मैं गाथा सुनाता।

अकेला चला था 
सफलता हूँ गाता,
न था साथ कोई,
मैं आगे बढ़ा था।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos