आत्ममंथन - कविता - डॉ. कुमार विनोद

मूल्यहीनता की छाया
और भ्रष्टाचार का धूप है,
जाने क्यूं! आजकल आईना चुप है।
हर बात एक बिंदु पर आकर
सलट जाता है
इसीलिए आईना टूटता बिखरता तो है,
सच दिखाने और कहने का साहस भी है उसमें 
पर हवा के सानिध्य में आते ही
पलट जाता है।
जब तक हम यह सोचते हैं कि इसके पीछे कौन है?
तबतक बहुत देर हो चुकी होती है
और अपना ही प्रतिबिंब बार-बार नजर आता है।

डॉ. कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)

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