कदम मत बाहर बढ़ा - कविता - अनिल भूषण मिश्र

तू बेवज़ह अपने कदम मत बाहर बढ़ा
देख बढ़ता कोरोना का मामला देश चिंता में पड़ा
कभी सोचा तुमने कर्मयोगियों की कठिन तपस्या
बेबस गरीब कैसे झेल रहे नित विकट समस्या
दाँव पर लग गयी है अब देश की अर्थब्यवस्था
इन सबको  अब तू मत ब्यर्थ बना
तू बेवज़ह अपने कदम मत बाहर बढ़ा
तू आँख खोल देख कोरोना की शक्ति
नहीं किसी के प्रति है इसकी भक्ति
मत अपना जीवन तू मृत्यु को भेंट चढ़ा 
मत अपनों को भी मौत की नींद सुला
नहीं किसी औषधि से ये अभी डरा
तू बेवज़ह अपने कदम मत बाहर बढ़ा।।
अब तक जो भी इसकी गिरफ़्त में आया
निश्चित उसने अपना प्राण गंवाया
ना है इसकी औषधि ना कोई इलाज 
पूरी दुनियाँ में बना हुआ है ये लाइलाज
देख महाशक्तियों की छाती पर कैसे चढ़ा
तू बेवज़ह अपने कदम मत बाहर बढ़ा।।
सारे डॉक्टर विज्ञानी का है एक सुझाव
घर ही में रखें सब अपने पाँव
जो अब भी तू मूर्खता में रहा मगरूर
प्रशासन भी होगा सख़्ती करने को मजबूर
सुन अब शासन भी हो गया और कड़ा
तू बेवज़ह अपने कदम मत बाहर बढ़ा।।
अब जो करे कर्मयोगियों पर हमला या पाँव निकाले
पुलिस प्रशासन उसको जेलों में डाले
भूषण कहते सब मिल जनता की जान बचाओ
जाहिल उद्दण्डो को सबक सिखाओ
मूर्खो तुम भी अब अपनी खैर मनाओ।।

अनिल भूषण मिश्र - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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