वफ़ा कर या दग़ा, अब तेरी मर्ज़ी!
तेरे लबों पर सब मुस्कानें रख दी,
अब हंसा हमें या रूला, तेरी मर्ज़ी!
रास्तों में तेरी हमने पलकें धर दी,
चूम ले चाहे ठुकरा दे, तेरी मर्ज़ी!
सब रंगिनियां, तेरी आँखों में भर दी,
चिराग़ जला चाहे बुझा, तेरी मर्ज़ी!
मौहब्बत में हमने हद सी कर दी,
सलामत रख या तबाह, तेरी मर्ज़ी!
कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)