भूख हड़ताल - कहानी - प्रवीण श्रीवास्तव

अहिंसक और स्वाभिमानी  व्यक्तियों का सबसे अचूक अस्त्र  है अनशन , जिसको हम भूख हड़ताल भी कहते है । भूख हड़ताल में प्रायः ऐसे व्यक्तियों के संगठन का निर्माण होता  है जो बिना किसी मार काट के ,बिना किसी हिंसक कार्यों के अपनी बात प्रशासन तक पहुचाते है पर समाज मे अज्ञानी लोग अनशन या भूख हड़ताल को कमजोर और निरीह व्यक्तियों का कार्य ही मानते है । परंतु मेरा दृष्टिकोण भूख हड़ताल के प्रणेताओं के प्रति समाज की इस नज़र से भिन्न है और मेरा ख़ुद का मत है कि स्वाभिमानी, अहिंसक और न्यायप्रिय व्यक्ति ही भूख हड़ताल का मार्ग चुनते है क्यों कि वो हिंसा का मार्ग चुन कर कानून को अपने हाँथ की कठपुतली नहीं बनाते । भूख हड़ताल कर रहे लोगो के संगठन के आगे प्रशासन को भी अंततः नतमस्तक होना ही पड़ता है क्यों कि संगठन में अपार शक्ति होती है ।

मुझे आज भी याद है अपने गांव की सन 1992 की वह भूख हड़ताल । मध्यप्रदेश राज्य का लगभग दो हज़ार की आबादी बाला हमारा वह गांव जो कि राजनीति और न्यायप्रियता के कारण पूरी तहसील में प्रसिद्ध था ।इस गांव में केवल एक ही व्यक्ति का दबदबा था वो थे लाला जी ,दबदबा इसलिए नहीं कि लाला जी पिछले बीस वर्षों से गांव के सरपंच थे बल्कि इसलिए कि वो अपनी न्यायप्रियता और सत्यता के लिए प्रसिद्ध थे ,कई बार पंचायत में उन्होंने ऐसे निर्णय भी किये थे जिनसे उनके अपनों को भी घाटा उठाना पड़ा था ,परंतु न्याय तो न्याय होता है जब तक दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाये फिर कैसा न्याय  । यही कारण था कि गांव के और आस पास के गांव के लोग उनका आदर सम्मान करते थे । फिर आया दूषित राजनीति का युग , पैसे की चमक के कारण वोट बिकने लगे , और निष्ठाएं क्रय की जाने लगी परिणामस्वरूप इस बार लाला जी के बजाय सुदेश  गुप्ता सरपंच बन गए  ।

गुप्ता जी के सरपंच बनते ही प्रारंभ हुआ गांव के लोगो का शोषण , जिन लोगों ने गुप्ता जी के पक्ष में अपना मतदान  किया वो भी पछताने लगे , किसी की भी जमीन पर कब्जा कर लेना, किसी की भी गाय भैंस हकवा लेना उसकी दिनचर्या बन गयी थी।

लाला जी अपने गांव और ग्रामवासियों को अत्यधिक प्रेम करते थे उनको गुप्ता जी का अनैतिक कार्य और ग्रामवासियों का शोषण नागवार गुजरता था ,कई बार तहसील स्तर और जिला स्तर पर लाला जी  ने शिकायतें भी की पर पैसों की चमक के आगे शिकायतों से भरे पत्र रद्दी को टोकरी में चले गए । लोग दबी जुबान से नए सरपंच के काले कारनामो का चिट्ठा लाला जी को सुना तो जाते थे पर सामने आकर बोलने की हिम्मत किसी को न थी ।
पर कहते है न कि जहाँ पर चाह होती है वहां स्वत: ही राह प्राप्त हो जाती है । लाला जी को भी नवनिर्वाचित सरपंच के अवैध कार्यों को रोकने के लिए खुद व खुद राह मिल गयी । हुआ यह कि    जब प्रत्येक गांव गांव में टेलीफोन का लगने का आदेश आया तो इसी योजना के फलस्वरूप लाला जी के गांव में भी इस योजना का प्रारंभ हुआ और सरपंच गुप्ता ने यह कार्य अपने हांथों में ले लिया । टेलीफोन एक्सचेंज के लिए किसी का भी बड़ा सा भवन किराए पर किया जा सकता था परंतु गुप्ता जी ने सोचा कि सरकारी एक्सचेंज के बहाने किसी भी सरकारी सर्वे नंबर पर भवन खड़ा कर दूंगा तो किसी को शक भी नही होगा ,भवन भी बन जायेगा और उसका किराया भी सरकार से मिलेगा ,गांव के लोग भी विरोध नहीं कर पाएंगे ।

एक्सचेंज के भवन के निर्माण के लिए सरपंच गुप्ता ने गांव के बीचोबीच बने रामलीला मैदान को  चुना । यह मैदान ज्यादा बड़ा तो न था पर रामलीला या नोटंकी के समय हज़ार पंद्रह सौ दर्शक आसानी से बैठ जाते थे ।मैदान के आसपास अनेक दुकाने औऱ लोगों के घर बने हुए थे ,मैदान के सबसे छोर पर एक मंच भी बना हुआ था,इसी मंच पर कई बार मैंने भी अनेक पौराणिक कथाओं का मंचन होते हुए देखा था ,उसी मंच पर रामलीला में पूर्व सरपंच लाला जी भी कैकई और केवट के  चरित्र का अभिनय कर चुके थे ,जिस दिन लाला जी के अभिनय बाला दिन होता था पूरा मैदान लोगों की भीड़ से खचाखच भर जाता था ,आस पास के गांव से भी लोग कैकई और केवट बने लाला जी को देखने आते थे । उसी मैदान के एक किनारे पर बजरू साहू की दुकान और उनका निवास था जो कि साइकिल के पंचर सुधार कर अपना जीवनयापन करते थे । दूसरी तरफ अवधराम चौबे जी की आटा चक्की थी ,इसके अलाबा भी अन्य दुकाने थी जैसे किराने की दुकान और चूड़ियों की दुकान ।

बैसे तो रामलीला मैदान से सभी को प्रेम था परंतु आपस मे एक दूसरे के विरोधी होने के बाबजूद भी  बजरू साहू जी और अवधराम चौबे जी को रामलीला मैदान से विशेष प्रेम था क्यूं की दोनों ही रामलीला में अनेक चरित्रों का अभिनय करते थे । जैसे हर कलाकार की इच्छा होती है कि उसके अभिनय को अधिक से अधिक लोगो का प्यार मिले । रामलीला की बात छोड़ दें तो दोनों आपस मे इतने विरोधी थे कि पता चले छोटी बात पर भी हुआ झगड़ा सुबह से शाम तक चलता , उनका यही झगड़ा आस पास के लोगों को मनोरंजन का कारण भी था । 

पहिले यह लोग भी आपस मे प्रेम से रहते थे पर झगड़े की शुरुआत कुछ इस तरह हुई एक बार अवधराम चौबे जी की साइकिल पंचर हो गयी और बे साइकिल का पंचर ठीक करवाने साहू जी के पास गये ।उस समय किसी अन्य ग्राहक की साइकिल सुधारने में व्यस्त साहू जी ने चौबे जी से इंतज़ार करने को कहा बस यही बात चौबे जी को बुरी लग गयी और उन्होंने साहू जी को मन ही मन सबक सिखाने की ऐसी युक्ति सोची कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ।

संयोग से दूसरे दिन रामलीला मैदान में सीता हरण बाले प्रसंग का मंचन होना था जिसमे चौबे जी को रावण और साहू जी को जटायु का पाठ देना था ।रात को रावण बने चौबे जी ने जटायु बने साहू जी से अपने अपमान का ऐसा बदला लिया कि दर्शक तो वाह वाह कर उठे पर साहू जी दो दिन तक अपनी चारपाई पर ही कराहते रहे ,परंतु रामलीला में अभिनय जो किया था खुद किसी से बुराई तो कर ही नही सकते थे, भले ही उनकी पत्नी गायत्री कई दिनों तक मोहल्ले की महिलाओं के सामने चौबे जी को कोसती रही कि" हुलकी पड़ जाए इस निगोड़े पर , मुंह झुलस जाए उसका जिसने मेरे आदमी को खटिया में मिला दिया ।"
 उसी घटना ने दोनों के परिबार में लड़ाई के बीज बो दिए थे , पर झगड़े के बाबजूद भी रामलीला मैदान से दोनों को असीम प्रेम था।
यही कारण था कि जिस दिन गुप्ता सरपंच ने रामलीला मैदान में मंच के किनारे ही टेलीफोन एक्सचेंज के निर्माण के लिए भूमि पूजन कराया तो दोनों का माथा ठनका। इतिहास साक्षी है जब सभी पर समान बिपत्ति आती है तो लोगो के अपने खुद के बैर भाव नगण्य हो जाते है और सभी अपना मान अपमान ,स्वार्थ ,इर्ष्या प्रवृत्ति, त्याग के एकता के सूत्र में बंध जाते है और उस बिपत्ति से उबरने का मार्ग खोजने लगते है ।

चौबे जी और साहू जी ने गुप्ता जी का खूब विरोध किया ,अनेक बार निर्माण स्थल पहुंच कर खरी खोटी सुनाई पर अपने अहंकार में चूर सरपंच गुप्ता ने दोनों को अपमानित कर के भगा दिया । आस पास के लोग केवल मूक दर्शक बन कर देखते रह गए किसी मे आगे आने का साहस नहीं हुआ ।

सभी के सामने हुए अपने अपमान से क्षुब्ध हो कर दोनों  अपने पूर्व सरपंच लाला जी के दरवाजे पर पहुचे ,और अपनी आपबीती सुनाई । लाला जी यह देख खुश थे कि एक दूसरे से बिल्लियों की तरह झगड़ने बाले  चौबे और साहू राम के तत्व पर एकाकार हो गए थे बस इतनी सी चिंगारी ही अंधकार से प्रकाश तक के सफर के लिए पर्याप्त थी ।
दोनों लोग लाला जी को अपने साथ  एक्सचेंज के निर्माण स्थल पर लिवा ले गए वहां नींव खुदाई का कार्य प्रारंभ हो चुका था । सरपंच गुप्ता पास ही कुर्सी डाले हुए निर्माण कार्य देख रहा था ,गांव के अन्य लोग भी झुंड बना कर कार्य देख रहे थे इसके अलाबा वो कर ही क्या सकते थे।

लाला जी को आता देख सरपंच गुप्ता खड़ा हो गया ,लाला जी के प्रति उसका यह सम्मान देना भय और आदरभाव का समिश्रण था । गुप्ता तो नया नया सरपंच बना था परंतु लाला जी पिछले बीस वर्ष से लगातार गांव के सरपंच थे ,सरपंच से पहिले वो 1945 में स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना योगदान दे चुके थे और महात्मा गांधी जी से प्रभावित हो कर उनके जैसी ही वेशभूषा बना ली थी ।
लाला जी के चेहरे का तेज ऐसा था कि जिससे सूरज का तेज भी निष्क्रिय हो जाये । तो उनको आता देख गुप्ता खुद व खुद खड़ा हो गया ,गुप्ता कुछ बोलता उससे पूर्व ही लाला जी बोल पड़े -
" यह सब क्या अन्याय है गुप्ता ?"
अरे लाला जी आप ! आइये बैठिए , वो क्या है न जब गांव में तरक्की की बात आई तो मैंने भी सोचा कि टेलीफोन के मामले में हमारा गांव क्यों पिछड़ा रहे ।" गुप्ता ने अपना पक्ष रखा ।
" वो तो हम देख ही रहे है परंतु अपनी इस निजी बिल्डिंग का निर्माण तुमने अपने खाते की जमीन पर क्यों नही कराया ,यह मैदान तो गाँव बालों के मनोरंजन का स्थान है, यहां रामलीला होती है  ।" लाला जी ने कहा।
"अरे लाला जी अब टेलीविजन पर रामायण और महाभारत आने के बाद कौन देखता है रामलीला लाला जी । "गुप्ता ने कुटिल मुस्कान से लाला जी की तरफ देख कर कहा ।
" इस स्थान पर हम टेलीफोन एक्सचेंज बनने नही देंगे ।" लाला जी ने अपना निर्णय सुनाया ।
"ठीक है लाला जी आप रोकने का प्रयास करो ,हम बनाने का करते है । देखते है किसकी जीत होती है । पर ध्यान रखो पैसों में वो ताकत होती है कि अच्छे अच्छों का ईमान डिगा सकता है।" 
गुप्ता ने अहंकार से कहा ।
"पर गुप्ता मेरे पक्ष में बहुत सारे लोग है ,हर कोई पैसे का भूखा नही होता ,लोगों में अभी भी ईमान जिंदा है " लाला जी ने ग्रामवासियों पर अपना विश्वास जताया ।
"ठीक है लाला जी प्रयास कर के देख लो ,मैं इस गांव के लोगों की मानसिकता चुनाव से ही समझ गया हूँ , मैं अगर शौचालय में भी शक्कर डाल दूं तो गांव के लोग शक्कर शक्कर चाट लेंगे ,। इन लोगों के लिए मुझसे बैर मत लो।" 
गुप्ता ने कहा ।
" ठीक है तुम निर्माण कार्य जारी रखो ,अगर मुझमें सामर्थ्य होगा तो काम जरूर रुक जाएगा ।" इतना कहने के पश्चात लाला जी वहां से चले आये । लाला जी को अपनी ईमानदारी पर भरोसा था ,वो समझते थे कि बीस साल सरपंच रहे है जिले के समस्त अधिकारियों से संपर्क है तो क्या जनहित का वो इतना सा कार्य न करेंगे । दूसरी तरफ गुप्ता को अपने पैसों पर पूर्ण यकीन था वो समझता था कि जिसके पास लक्ष्मी हो वो किसी का भी ईमान डिगाने में समर्थ है । 

सच्चा कलाकार केवल तालियों की गड़गड़ाहट का ही भूखा होता है उसके सामने रुपया पैसा ,स्वाभिमान, सब कुछ शून्य होता है ।रामलीला मैदान की रक्षा के लिए तीनों कलाकारों ने अपनी ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया ,जिले के आला अधिकारियों के दरबार मे हाज़िरी दे ली परंतु कुछ न हो पाया  । इस बीच गुप्ता सरपंच ने  तहसीलदार ,गिरदावर,और पटवारी से मिल कर रामलीला मैदान का सर्वे नंबर अपने नाम करा लिया था और युद्ध स्तर पर निष्कंटक निर्माण कार्य चलने लगा था । ग्रामवासियों को यह सब बुरा तो लगता था पर बेबश थे । महीने भर ऑफिसों के चक्कर काट काट कर लाला जी अपने दोनों सहयोगियों चौबे जी और साहू जी समेत अपना सर पीट कर हारे हुए जुआरी की तरह घर बैठ गए थे । हार का दंश इतना गहरा लगा था कि साहू और चौबे की घरबाली रोज सुबह शाम तानों की बौछार करती रहतीं । सहुआइन तो रोज ही खिटखिट करती -
"बड़ा प्यार उमड़ता है न रामलीला से ?इतना मुझसे नही है ,अगर मैं मर भी रही होती तो अस्पताल दवाई दारू को नहीं जाते ,रामलीला के लिए एक महीने से तहसील के चक्कर काट रहे हो । अरे मैं पूछती हूँ क्या हुआ अब ? तुम तीनो ने मिल कर बानियाँ की मूंछ का एक बाल भी उखाड़ पाया ? अब खूब बन जाओ जटायु ,उसी से पल जाओगे ,अब मुझे ओर बच्चों को किसी कुएं में धक्का दे दो । सरपंच से दुश्मनी मोल ली है किसी दिन ऐसा दाव लगायेगा कि  चारों खाने चित्त हो जाओगे ।"

साहू जी बेचारे परेशान ,घर मे रोज रोज के तानों से तंग आ गए थे ।यही हाल चौबे जी और लाला जी का था जहाँ से भी गुजरते तो उनको ऐसा लगता जैसे सभी उनको देख कर हंस रहे हों । और गुप्ता तो यह समझने लगा था कि जैसे उसने बहुत बड़ा युद्ध जीत लिया हो ।

ऐसे ही एक माह बीत चुका था इस बीच एक्सचेंज का निर्माण कार्य लगभग पूरा होने को ही था। लाला जी भी यह समझ चुके थे कि लोग उगते सूरज को ही नमस्कार करते है ,पैसों की  चमक हमेशा ईमानदारी पर भारी होती है । अपने कार्यकाल में लाला जी ने बड़े बड़े कार्य चुटकियों में कराए थे परंतु अब लगता था कि उनके पास कुछ नहीं रहा न ताकत और न ही जन समर्थन । सब कुछ होनी समझ तीनो लोग अपने अपने घर की रोटी रोजी और निजी समस्याओं में व्यस्त हो गए थे, सच ही है घर मे छाए अंधकार को ही पहिले दूर किया जाता है फिर मंदिर में दिया जलाया जाता है ।

एक दिन सुबह के समय लाला जी अपने घर के दरवाजे पर बैठे किसी की समस्याएं सुन रहे थे तभी उधर से टेलीफोन एक्सचेंज का निर्माण करने बाला खुरपी कारीगर अपना उदास चेहरा लिए वहां आया और लाला जी के पैर छू कर बोला -
"लाला जी गुप्ता ने मेरी मजदूरी नहीं दी ,मेरी पत्नी बुखार से तप रही है ,मुझे पैसों की जरूरत है ,मैंने मांगे तो मार पीट कर भगा दिया ।"
"पर तूँ तो अन्याय के काम में उसका साथी था ,तूने तो यह भी नही देखा क्या सही और क्या गलत । अब भुगत ।।।" लाला जी ने उसकी गलती याद दिलाई ।
" लाला जी मैं बहुत परेशान हूँ ,गुप्ता कहता है कि काम के वक़्त दोनों टाइम का खाना खिलाया तो पूरी मजदूरी पट गयी ,जबकि पहिले ऐसा तय नहीं था ।" कारीगर रुआंसा हो कर बोला।
" जब निर्माण कार्य आरंभ हुआ तो तुझको केवल अपनी मजदूरी दिखी तूने यह भी नही सोचा कि जिस जमीन पर निर्माण चल रहा है वो रामलीला की जमीन है । तूँ भी दोषी है खुरपी ।" 
मैं शर्मिंदा हूँ लाला जी ,अगर मुझको पैसे न मिले तो आज ही मैं भूख हड़ताल पर बैठ जाऊंगा ।" खुरपी बोला ।
'भूख हड़ताल' शब्द सुन कर लाला जी को ऐसा लगा  जैसे किसी ने अंधकार में एक ज्योति पुंज प्रकाशित कर दिया हो ,इतना प्रकाश उनको कर्तव्य पथ पर अग्रसर होने के लिए पर्याप्त था। फिर भी उन्होंने खुरपी को परखा -" इससे क्या होगा ? और तेरा कौन साथ देगा ? क्यों कि यह तेरे अकेले की लड़ाई है ,अगर तूँ अपनी इस लड़ाई का स्वरूप बदल कर जनहित के लिए लड़ तो तेरा सब साथ देंगे अगर मर भी गया तो बलिदानी कहलायेगा ।" 
" मैं तैयार हूं लाला जी ,आप बता दो क्या करना है ? अब मैं आपके दिखाए हुए रास्ते पर ही चलूंगा ।" खुरपी ने अटल निश्चय से कहा ।
"तो जा साहू और चौबे को बुला ला ।" लालाजी ने आदेश दिया ।
लाला जी का आदेश पा कर कारीगर दोनों को बुलाने चला गया बे दोनों तो जैसे तैयार ही बैठे थे ,तुरंत ही दौड़े दौड़े आ गए ।
लाला जी ने बताया -
" अब हमारे पास समय कम है ,अब करने या मरने का समय आ गया है ।अब हमें अपना पुरुषार्थ देखना है कि हम रामलीला मैदान के लिए कुछ कर पाते है या नही ।आज हम गांधी जी का अनुकरण करेंगे और आज से ही भूख हड़ताल प्रारंभ करते है  जब तक कि एक्सचेंज को वहां से हटवा न दें ।  क्या तुम लोग तैयार हो??? 
" हां हम लोग तैयार है ।" तीनों एक ही स्वर में बोले ।
तीनों के स्वर में एकाग्रता और अडिगता देख लाला जी प्रसन्न हो उठे , मन का विश्वास चौगुना हो गया और तुरंत ही भूख हड़ताल की घोषणा कर दी। गांव भर में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी ,पता ही नहीं चला कब और किसने तैयारियां कर लीं।किसी ने अपने घर से फर्श  ला कर रामलीला के मंच पर बिछा दिया ,किसी ने लाउड स्पीकर लगा दिया और भजनों की आवाज़ गूंजने लगीं ।
प्रारंभ में भूख हड़ताल पर बैठने बालों की संख्या केवल चार थी परंतु धीरे धीरे इस संख्या में बृद्धि होने लगी ।पूरा मंच खचाखच भर गया ।

फिर भाषण बाजी का प्रारंभ लाला जी ने किया -
"मेरे प्यारे ग्रामवासियों , आप सबको मालूम है कि मैंने आप सभी को अपने परिबार का सदस्य ही माना है । जब भी आप में से किसी पर भी कोई विपत्ति का समय आया होगा आपने सबसे पहिले मुझे अपने साथ देखा होगा ।"
लाला जी बोल ही रहे थे कि देखते देखते लोग अपने अपने घरों से निकल निकल कर मैदान में इकठ्ठे होने लगे और लाला जी को सुनने लगे ।पास ही निर्माण कार्य का निरीक्षण करता हुआ गुप्ता सरपंच भी लाला जी को सुन रहा था और भूख हड़ताल में बैठे अपने पक्ष के खुरपी कारीगर में देख मन ही मन उसको गालियां  दे रहा था । निर्माण कार्य मे लगे मजदूर और कारीगर भी भाषण सुन रहे थे आज उनका मन भी निर्माण कार्य में नही लग रहा था वे बार बार अपना हाँथ रोक कर मंच की तरफ देखने लगते थे, गुप्ता अपने काम का नुकसान होते देख बार बार उन पर गुस्सा हो रहा था । गुप्ता की हालत उस खिसियानी बिल्ली की तरह हो गयी थी जो खंबा नोच कर अपनी गुस्सा शांत कर रही हो , उसको काटो तो खून नही जड़बत हो कर देखता रह गया कि यह सब क्या हो रहा है ।
अब घरों से महिलाएं निकल निकल कर मैदान में इकठ्ठी होने लगी और जमीन पर बैठ कर लाला जी को सुनने लगीं ।
लाला जी कह रहे थे -
" भाइयो मैंने बीस साल तक सरपंच पद पर रह कर आप सभी की सेवा की है । आप सभी साक्षी है कि न्याय अन्याय की लड़ाई में मैंने सदैव न्याय का ही पक्ष लिया है ,जाने अनजाने में  आज तक मुझसे कोई भी ऐसा कार्य नहीं हुआ कि किसी को कोई पीड़ा हुई हो । आज आप सभी के भरोसे ही हमनें अपनी लड़ाई प्रारंभ की है । हमारे गांव में एकमात्र यह मैदान है जहां पर अनेक धार्मिक प्रसंगों का चित्रण होता है जिनका हम सभी अनुकरण करते है और अपने बच्चों में संस्कारों का निर्माण करते है । जरा सोचो कि जब यह मैदान ही नहीं रहेगा तो हम लोग रामलीला का मंचन कहाँ करेंगे । अपने गांव में टेलीफोन आने की मुझे खुशी है पर एक्सचेंज का निर्माण रामलीला मैदान के बजाय अन्य जगह पर भी हो सकता था । मैं गुप्ता जी का विरोधी नही हूँ ,विरोधी हूँ तो गलत नीतियों का । भाइयो आप लोग अपने हाँथ उठा पर इस कार्य में मुझे अपना समर्थन प्रदान कीजिये ।"
लाला जी ने विश्वास की नजर से पूरे जन समूह को देखा ,तुरंत ही एक एक कर के सभी ने अपने अपने हाँथ ऊपर उठा दिए ,महिलाओं ने भी जब अपने पति को इस यज्ञ में भाग लेते हुए देखा तो उन्होंने भी समर्थन में हाँथ उठा दिए । गज़ब की स्फूर्ति, आत्म विश्वास सभी मे भर गया । एकता की भावना किसी संक्रामक रोग की तरह सभी में फैल गई ।जो लोग पल भर पहिले सूखे हुए पत्तों की भांति इधर उधर बिखरे हुए थे वो लाला जी वक्तत्व के कारण एकता के सूत्र में बंध गए थे ,सभी ने अपनी कायरता पर विजय पा ली थी । जिस प्रकार एक दीपक सम्पूर्ण घर को आलोकित कर देता है उसी प्रकार सत्यता,और ईमानदार लाला जी ने कायरता रूपी अंधकार से भरे सभी के ह्रदयों में साहस और आत्मविश्वास के दीप प्रज्वलित कर दिए थे ।
 इधर गुप्ता का जल भून कर बुरा हाल था ,उसका पैसों का जो गर्व था वो चूर चूर हो गया । फिर भी उसने अपना अंतिम शस्त्र का उपयोग किया और तहसील स्तर के समस्त अधिकारियों को बुलाबा भेज दिया ।

भूख हड़ताल में सुबह से लेकर शाम हो गयी । मंच पर लोगों की भाषणबाजी चल रही थी , मैदान से लोग निकल निकल कर अपनी अपनी बात रख रहे थे , कोई कोई भजन या राम चरित मानस की चौपाइयाँ सुना रहा था ।लोगों को बोलने के लिए पहिली बार मंच मिला था । महिलाएं भी पीछे नहीं थीं वो भी मैदान के दूसरे छोर पर झुंड बना कर ढोलक की थाप पर भजन गा रहीं थी ।अजीव दृश्य था न किसी को खाने की सुध न पीने की । ऐसा  लग रहा था जैसे रामलीला मैदान स्वयं ही अपनी रक्षा के लिए खड़ा हो गया हो। निर्माण कार्य मे व्यस्त मजदूर भी काम छोड़ छोड़ मंच के सामने आ कर सबको सुनने लगे थे और गुप्ता मैदान छोड़ कर जा चुका था ।

शाम के पांच बजे के करीब रामलीला मैदान में तहसीलदार ,विधायक, पटवारी और अन्य अधिकारियों की गाड़ियां आ पहुंचीं । गाड़ी से उतर कर वो सभी मंच के निकट आये और तहसीलदार ने लाला जी को देख कर रोब से पूंछा -
"यह सब क्या है लाला जी , यह सब गलत है ??"
लाला जी ने हाँथ जोड़ कर विनम्रता से उत्तर दिया -
"मैं तो अपने कर्त्तव्य पथ पर हूँ साहिब ,अपने गांव के लिए मेरे प्राण भी चले जाएं तो कोई कष्ट नहीं ।।"
लोगों को भड़काने के जुर्म में मैं आपको गिरफ्तार भी करवा सकता हूँ।" तहसीलदार ने अपना रोब दिखाया।
लाला जी उसी प्रकार विनम्रता से हाँथ जोड़े खड़े रहे -
"आप अपना काम कीजिये तहसीलदार साहब , मैं अपना काम कर रहा हूँ , मैं गांधी जी के साथ रहा हूँ सत्य की राह पर चल कर गिरफ्तारी देने में मुझको कोई हर्ज नही ।" 
पास ही खड़े क्षेत्र के विधायक यादव जी लाला जी को व्यक्तिगत रूप से  जानते थे कि वो झुकने बालों में से नहीं है। वो आगे आये  और बोले -
लाला जी हम सभी आपका सम्मान करते हैं,हम यह नहीं चाहते कि आपके सम्मान को कोई ठेस पहुंचे । आप खुद ही बताइए कि आप भूख हड़ताल वापस कैसे लेंगे ???
लाला जी अत्यंत चतुर व्यक्ति थे तुरंत आगे आये और बोले -
मेरी गुप्ता जी से व्यक्तिगत कोई लड़ाई नहीं है , मैं तो जनता का सेवक हूँ ,आप तो ग्रामवासियों से ही पूछिये कि वो क्या चाहते है ?"
विधायक जी बिना पलक झपकाए लाला जी के चातुर्य को देखते रह गए ।उस वो मंच पर चढ़ कर आये और माइक पर ग्रामवासियों को देख कर बोले-
"आप सभी क्या चाहते हैं??"
"रामलीला मैदान ।"
समूर्ण जन समूह से एक ही आवाज़ उठी ।
तहसीलदार जो कि गुप्ता का पैसा खाये था विधायक जी को माइक से खींच कर किनारे ले गया और बोला -
"यह क्या कर रहें है आप । मैं प्रशासन का डंडा चलाने का आदेश देता हूँ ।"
नहीं तहसीलदार साहब आप तो अपना ट्रांसफर करवा के कहीं ओर नोकरी कर लेंगे पर मुझको अपनी राजनीति इन्ही लोगों में करनी है । मैं ग्रामवासियों और सत्य का साथ दूंगा ।"
यह सुनते ही तहसीलदार समेत गुप्ता के चेहरे का रंग उड़ गया और लाला जी के चेहरे की चमक बढ़ गयी । गुप्ता जो सबको खरीदने में स्वयं को समर्थ पाता था आज हारे हुए जुआरी सा खड़ा था ।

विधायक जी से तहसीलदार बोले- " हम प्रयास करेंगे कि एक्सचेंज निर्माण में स्टे मिल जाये ।"
मंच पर उपस्थित सभी हड़ताली दोनों के वार्तालाप सुनने की चेष्टा में पास आ गए थे तुरंत बोले -
"नहीं ! हम जब तक अनशन नहीं तोड़ेंगे जब तक कि फैसला न हो जाये ।" 
विधायक जी ने समझाया -
" जब तुम लोगों को कानून अपने हाँथ में लेना ही है तो अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तरह एक्सचेंज तोड़ डालो और हम लोग क्या कर सकते हैं ?
विधायक जी का इतना कहना था कि लोगों की भीड़ निर्माणाधीन भवन पर चढ़ गई ,लोग अपने अपने घरों से गेंती ,सब्बल ,फावड़े उठा लाये और भवन को तोड़ने लगे । लोगों को भड़कता देख तहसीलदार ,पटवारी सन्न रह गए कि यह सब क्या हो रहा है और रोकने का प्रयास करते रहे पर कौन किसकी सुनता था , सभी पर जैसे एक ही रंग चढ़ा था ।अंतत: दोनों ने  गुप्ता समेत पास ही बने स्टेटबैंक में छुप कर अपने प्राणों की रक्षा की ।

आज विधायक जी भी लोगो के साथ उनके रंग में डूबे हुए दिख रहे थे , जय जय श्री राम के नारों से सम्पूर्ण मैदान गुंजायमान हो गया । लाला जी अपने चेहरे पर विजय का गर्व लिए मंच पर खड़े खड़े बिल्डिंग को ध्वस्त होते देखते रहे ।साहू जी और चौबे जी अपनी व्यक्तिगत लड़ाइयों को भूल कर कब एक दूसरे के गले लग  गए उनको खुद पता न चला ।

एक घंटा भी नहीं लगा और सम्पूर्ण भवन भूमि में मिल गया। विजय उद्घोष इतना शक्तिशाली था कि विधायक को छोड़ कर समस्त अधिकारी और गुप्ता बैंक में से कब मैदान छोड़ कर भाग गए किसी को कोई पता न चला ।
एक अद्भुत शक्ति का संचार सभी में था, लोग जीत के जश्न में एक दूसरे से गले मिल रहे थे । इधर खुरपी कारीगर अपने हांथों से बनाई हुई इमारत को जमीन में मिलते देख कर एक अद्भुत शांति और परम सुख को प्राप्त कर रहा था ।


प्रवीण श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश) 

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