नींद चुराने वाले - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

दिल की दहलीज़ पे चुपचाप से आने वाले।
कौन   है तू   ये   बता   नींद  चुराने  वाले।।

मेरे खिलते हुए गुलशन को जलाने वाले।
क्या मिला तुझको बहारों को मिटाने वाले।।

किसी दुश्मन पे मैं तोहमत भी लगाऊँ कैसे।
मेरे अहबाब ही हैं मुझको मिटाने वाले।।

दे गए आंसू बहाकर वो तसल्ली दिल को।
लूट के घर को मिरे आग लगाने वाले।।

नाखुदा कौन करेगा भला अब तुझ पे यकीं।
लबे साहिल पे मेरी कश्ती डुबाने वाले।।

लूटते हैं यहां रहजन ही तो रहबर बनकर।
अब नहीं मिलते यहाँ राह दिखाने वाले।।

तेरे क़दमों पे ज़माने की भी खुशियाँ हो निसार।
मेरी तुरबत को यूँ फूलों से सजाने वाले।।

यूँ सितमगर तो कई देखे हैं अक्सर लेकिन।
"दिल" को मिलते ही नहीं दिल से लगाने वाले।।

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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