रोग शोक से मुक्त जग, कुसमित पुष्प शशांक।।१।।
सोम सरस मधुपान से, हो जीवन आनंद।
शशि कोमल सम हृदय हो, परहित हो आसन्द।।२।।
वैर भाव मन सब तजे, करें राष्ट्र सहयोग।
नव भारत निर्माण से, कीर्ति सम्पदा भोग।।३।।
विनत धीर तारक खचित, शीतलता दे लोक।
विलसित कमली कुमुदिनी, चन्द्रहास हर शोक।।४।।
लखि मयंक हर्षित हृदय, आतुर प्रिय अनुराग।
मदमाती है शशिप्रिया, साजन मिल रतिराग।।५।।
शिवशेखर विधु देखकर, कुपित चाँदनी रूठ।
मना निशाकर थक गया, सजना बोले झूठ।।६।।
सुन्दर चपला चन्द्रिका, कमलाधर मुस्कान।
प्रिया निशा दुःखार्त मन, देख चन्द्र अवमान।।७।।
फँस मयंक नवप्रीति में , सच है रजनी कोप।
लखि मृगनयनी चन्द्रिका , करती शशि आरोप।।८।।
निशि मयंक की अस्मिता, मानक शशि अस्तित्व।
कहाँ खिले शशि चन्द्रिका, रजनी बिन व्यक्तित्व।।९।।
निशिचन्द्र की चाँदनी, शान्ति प्रगति दे देश।
हो निकुंज कुसमित फलित, मीत प्रीत संदेश।।१० ।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली