मुस्करा देते हैं, पर प्यार बाक़ी है - ग़ज़ल - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

दो कोई आवाज़, बज उठें साज़।
उनके अंदाज पै, मुझे तो है नाज़। 

नहीं चाय नहीं अब चाह बाक़ी है।
अब तो बस एक हीआह बाक़ी है।

मय तो मेरे सामने, शेष शाकी है।
न जाने आएंगी भी, सांस बाक़ी है।

शब्द हैं, पर अभी गीत बाक़ी है।
अभी गति है, पर लय बाक़ी है।।

मुस्करा देते हैं, पर प्यार बाक़ी है।
नज़र उठाते हैं, इज़हार बाक़ी है।।

इंतजार ना कर तू  अब, ऐ विकल।
कह दे, मेरी इक इल्तज़ा बाक़ी है।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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