भ्रष्ठ प्रशासन - कहानी - शेखर कुमार रंजन

मैने अपना अब तक का जीवन देश भक्ति में बिताया। हर काम को बड़ी ही सावधानी से किया ताकि मै ऐसा कोई कार्य ना करू जिससे की कानून का उल्लंघन हो जाए। किन्तु आज की दास्तान सुनाने से पहले मैं अपनी परिचय देना चाहूंगा मै मिडिल क्लास फैमिली से हूँ। मैंने गरीबी को बड़ी नजदीक से जिया है। मैने दिन रात मेहनत करने के बाद एक स्कूटी खरीदा है किन्तु मैंने स्कूटी खरीदने के कुछ ही दिनों के बाद अपना लाइसेंस बनवा लिया था। क्योंकि मैं सरकार का कोई नियम का उल्लंघन करना नहीं चाहता इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्यों के दिल में देशभक्ति हैं और मैंने उन्हीं से यह सीखा है किंतु आज कुछ ऐसी घटनाएं हुई जो मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया।

मेरे एक दोस्त धर्मेन्द्र कुमार ने मुझसे कहा कि आज तुम्हें मेरे साथ सीतामढ़ी चलना है। मैंने पूछा क्यों धर्मेन्द्र जी मेरे क्लास साथी तो है ही साथ में मेरे बड़े भाई जैसा भी है। जिसने मुझे पढ़ाई के साथ साथ ही वास्तविक जीवन में भी बहुत सपोर्ट किया है। मैं उन्हें धर्मेन्द्र भैया कहकर ही पुकारता हूँ। मैंने कहा क्या धर्मेन्द्र भैया सीतामढ़ी क्यों जाना है, तो उन्होंने कहा कि मेरे आई टी आई का फॉर्म का अंतिम डेट है कॉलेज में कुछ काम है चलो यह सुनने के बाद मैंने कहा कि भैया मैं तो चलूंगा किन्तु पहले एक घंटा में अपना काम खत्म कर लू। धर्मेन्द्र भैया मान गए अब वो मेरे दफ्तर के बाहर एक घंटा तक इंतजार करने के बाद बोले चलना है। मैंने कहा हाँ भैया चलेंगे तो किन्तु मेरे पास पैसा नहीं है धर्मेन्द्र भैया बोले चलो ठीक है मैं स्कूटी में पेट्रोल डलवा देता हूँ। मैने कहा ठीक है भैया चला जाए कुछ दूर चलने के बाद मैंने कहा चलिए भैया बेलसंड पेट्रोल पंप पर ही तेल डलवा लेते है और करीब पांच मिनटों के बाद मैंने अपनी स्कूटी में पेट्रोल डलवाया अब मैं सीतामढ़ी जाने के लिए तैयार हो गया वहाँ जाकर आई टी आई में कार्य करवाने के बाद अब हमलोगों ने घर आने के लिए तैयार हो गए किन्तु घर आते वक्त मेरा एक पुराना दोस्त विश्वजीत मिल गया। हमलोग बातें करने लगे विश्वजीत कहा दोस्त घर जा रहे हो क्या? मैंने कहा हां भाई तो उसने कहा मैं भी चलू मैंने कहा दोस्त मैं क्या करूँ मैं और धर्मेन्द्र भैया दो आदमी पहले से हूँ तीन आदमी कैसे जाओगे। फिर मैंने देखा विश्वजीत के चेहरे को बिल्कुल उतर सा गया था। तब मैं और धर्मेन्द्र भैया ने तय किया कि विश्वजीत को भी लेकर चला जाए किन्तु फिर तीनों दोस्तों ने बात किया कि रास्तों में कहीं प्रशासन चेकिंग कर रहा होगा तो, फिर। सभी दोस्तों ने बारी बारी से कहा कि भाई मेरे पास फ़ाईन भरने के लिए पैसे नहीं हैं। धर्मेन्द्र भैया भी अपने पैसों से पेट्रोल डलवा दिए थे और मेरे पास करीब पचास रुपये ही बचा था। विश्वजीत के पास भी मात्र ऑटो जितना किराया ही बचा था। किन्तु धर्मेन्द्र भैया बोले भाई अभी रास्तों में चेकिंग नहीं रहता है किंतु फिर भी यदि ऐसा होगा तो मैं अपने गूगल पे से भुगतान कर दूंगा इतना कहकर हमलोगों ने चलना प्रारंभ कर दिया।

हमलोग आगे खुशी खुशी बढ़ रहे थे और बहुत खुश भी थे कि रास्तों में चेकिंग नहीं हो रही है। अब हमलोग बहुत खुश थे तब ही जंगल का इलाका शुरू हो गया था और आगे कुछ दूर बढ़ने पर वहा गाड़ी चेकिंग किया जा रहा था। हमलोग काफी डर गए अब कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब ही छोटा बाबू ने मुझे रोका मैं घबरा गया साथ में वो दोनों भी घबराए हुए थे। एक पल के लिए मुझे कुछ भी नहीं सूझा मुझे लग रहा था कि मैं विश्वजीत को बैठा कर कोई बड़ा भूल कर दिया हूँ। छोटा बाबू का नाम मैं बताना सही नहीं समझता किन्तु अब मुझे  स्कूटी को सड़क के दूसरे किनारे लगाने को कहा गया हमलोग घबराते हुए स्कूटी से उतरे और सड़क के दूसरे किनारे स्कूटी को लगा दिया। अब छोटा बाबू के साथ पांच-छः पुलिसकर्मी और थे। दो तीन के हांथो में डंडे और कुछ के हांथो में बंदूक थी। हमलोगों को स्कूटी के हैंडल पकड़कर खड़ा होने को कहा गया। अब हमलोग काफी घबरा गये थे क्योंकि एक पुलिसकर्मी को फ़ोटो खींचने को कहा गया। हमलोग फोटो खिंचवाने से डर रहे थे। पता नहीं अब क्या होगा? सबको पता चलेगा गाँव में तो बहुत सारी बदनामी होगी। विश्वजीत भी काफी ज्यादा घबरा गया था और वो स्कूटी का हैंडल नहीं पकड़ रहा था किन्तु छोटा बाबू के डांट फटकार के बाद वह पकड़ लिया और हम सबका फोटो निकाला गया और अब आगे बात करते हुए छोटा बाबू ने कहा एक स्कूटी पर तीन आदमी चलते हो। अपने गाड़ी का लाइसेंस दिखाओं मैन डरते हुए लाइसेंस निकाला और छोटा बाबू की ओर बढ़ाया फिर उसने कहा ड्राइवरी लाइसेंस दिखाओ मैंने वह भी दिखाया। अब उसने कहा चलो फ़ाईन भरो तीन आदमी नहीं जा सकते हो। मैं अब बड़ी मुसीबत में फँस चुका था क्योंकि तीनों दोस्तों में से किसी के पास पैसे नहीं थे। वहाँ पर हमलोगों के साथ और भी लोगों को पकड़ रखा था। उसमें से एक ने उसके ओर बढ़ते हुए अपनी मोबाइल दिया और कहा सर मुखिया जी का फोन है बात कीजिये वह पता नहीं क्या बात किये और उस लड़के को जाने को कहा। यह देखकर मैन भी कोशिश की अपनी कुछ बड़े जानपहचान का सहारा लिया जाए और एक बड़े हस्ती को फोन किया नाम नहीं बताना चाहूंगा किन्तु छोटा बाबू ने बात करने से इनकार कर दिया। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था अब क्या करूँ हमलोगों के पास पैसा तो था नहीं। छोटा बाबू ने कहा चिंता मत कीजिए थाना में आकर फ़ाईन भरकर गाड़ी ले जाइएगा। मैं बहुत डर गया था साथ में विश्वजीत और धर्मेन्द्र भैया भी डरे हुए थे क्योंकि इस जंगल में पैसों का व्यवस्था कैसे किया जाए।

पैसों का व्यवस्था करने के लिए वहाँ से निकलना जरूरी था किन्तु छोटा बाबू मेरे स्कूटी की चाभी भी ले चुके थे। लाख आग्रह करने पर भी देने को तैयार नहीं थे। तब ही एक और गाड़ी पर तीन लोगों को वहाँ पर रोका गया। उन तीनों में से एक लड़के ने छोटा बाबू को प्रणाम किया छोटा बाबू ने कहा अरे तुमलोग भी तीन बैठें हो कान पकड़कर उठ बैठ करो और यहाँ से जल्दी निकलो। यह देख मुझे पता नहीं क्यों किन्तु बहुत बुरा लगा। शायद यह छोटा बाबू के जानपहचान का था। तब ही दूसरी ओर से एक गाड़ी पर दो पुरुषों के साथ एक महिला बैठी जा रही थी। उसे भी नहीं रोका गया। मुझे वहाँ का माहौल कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। हमलोग काफी घबराए हुए थे क्योंकि वहाँ हमलोग लगभग दो घंटों तक खड़े थे कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा था। तब ही मुझे याद आया कि धर्मेन्द्र भैया के पास गूगल पे है क्यों न इसी से फ़ाईन का भुकतान कर दिया जाए। फिर तब दबे हुए स्वर में मैंने कहा सर मैं गूगल पे से फ़ाईन का भुगतान कर देता हूँ । तब ही छोटा बाबू चिल्लाते हुए बोले मैं यह सब नहीं जानता तुम कैश लाओ वरना थाना में गाड़ी जाएगी तुम वहां से ले जाना। छोटा बाबू अपने मोबाइल से किसी स्टाप को फोन पर कह रहे थे कि आओ यहाँ से एक गाड़ी ले जाना है।अब हमलोग काफी डर चुके थे। हर प्रयास विफल हो जा रहा था। एक ओर कुछ लोगों को ऐसे ही पैरवी पर छोड़ दिया जा रहा था। हमलोगों को प्रशासन के इस रवैया को देखकर गुस्सा भी आ रहा था किन्तु हमलोगों में कुछ बोलने तक का साहस नहीं था। हमलोग काफी हद तक डर गए थे। तब मैंने कहा सर पास में कोई बैंक वग़ैरह हो, तो वहाँ से पैसा ले आते हैं। छोटा बाबू बोले मैं वहीं से आ रहा हूँ बैंक का लिंक फेल हैं जाने से कोई फायदा नहीं यदि फिर भी जाना चाहते हो, तो पैदल जाओ। हमलोगों को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। तब ही मुझे एक जानपहचान का गाड़ी वाला वहाँ मिला उसे भी रोका गया था वह बैंक का ही एक स्टाप था। मैंने उनसे आग्रह किया कि सर मैं आपके एकाउंट पर पैसा डाल देता हूँ कृपया आप मुझे कैश पैसा दे ताकि मैं फ़ाईन भर सकूँ। किन्तु पता नहीं उसने अपने मुंह को टेढ़ करते हुए मना कर दिया। कहा मेरे पास पैसा नहीं है और वो वहाँ से चला गया। अब मेरे स्कूटी को ले जाने के लिए वहाँ एक आदमी आ जाता है और ले जाने के लिए तैयार हो जाता है।

हमलोग अब काफी ज्यादा घबरा गए थे माथे पर सभी के पसीने छूट रहे थे किंतु प्रयास जारी था।थोड़ी दूर मेरे स्कूटी को ले गया तब ही मैंने  चिल्लाते हुए कहा सर उसे रोकिये मैं फ़ाईन भर रहा हूँ। गाड़ी को थाना में नहीं भेजिए। इस बार वो स्कूटी को रोकवा दिए तब ही एक और तीन लोगों से सवार गाड़ी को रूकवाया गया किन्तु किसी बड़ा बाबू से बात करवाने के बाद उसे जाने दिया।हमलोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पैसों की व्यवस्था कैसे किया जाए। तब ही छोटा बाबू ने हमलोगों को पंद्रह मिनट का मौहलत दिए कि इतने देर में पैसों का बंदोबस्त किया तो ठीक वरना गाड़ी को थाना में भेज दूँगा।अब हमलोग बोले सर हमलोग घर यहाँ से कैसे जाए उसने बेरुखी अंदाज में कहा पैदल जाओ। मुझे गुस्सा भी आ रहा था खुद पर की इससे पहले मैं कभी ऐसा झंझट में नहीं पड़ा था। ये कहा फँस गया। तब ही हमलोगों ने आपस में बात किया की कोई जानपहचान का है यहाँ पर जो फ़ाईन का पैसा दे सके। हमलोगों की मदद कर सके। तब विश्वजीत ने कहा मेरी एक मासी यही दो किलोमीटर की दूरी पर रहती हैं किन्तु वह गरीब हैं पता नहीं उसे कहना ठीक होगा कि नहीं।यह सुनकर मुझे और धर्मेन्द्र भैया को एक उम्मीद की किरण दिखी। जिसके द्वारा इस मुसीबत से निकला जा सकता था। किन्तु दो किलोमीटर तक पन्द्रह मिनटों में पैदल जाकर आना मुश्किल लग रहा था। अब क्या करें? मुझे यह समस्या विश्वजीत जब बताया तो मैंने छोटा बाबू से आग्रह किया कि सर वहाँ तक हमें जाने दिया जाए पैसा लेकर आते हैं तो फ़ाईन भर देंगे किन्तु छोटा बाबू ने मना कर दिया। कहा किसी से लिफ्ट ले लो या पैदल जाओ तीन घंटे बीत चुके है और तुमलोगों से पैसों की व्यवस्था नहीं हो पाई छोड़ों थाना में आकर गाड़ी ले जाना। मैंने कहा सर विश्वजीत लिफ्ट लेकर जा रहा है और पैसा लेकर आता है। मैं अभी ही फ़ाईन भर देता हूँ। अब एक गाड़ी वाले से लिफ्ट लेकर विश्वजीत अपने मासी के घर पहूँचता हैं किन्तु वहाँ पता चलता है कि उसकी मासी गैस खरीदने के लिए वह पैसा रखी है, तो विश्वजीत को मांगने का हिम्मत नहीं कर रहा होता है। किन्तु बिना मांगे तो कुछ होने वाला था नहीं। वह वर्तमान स्थिति को देखते हुए अपने मासी से पैसा माँगकर लाता है और फ़ाईन भरता है फिर हमसब वहाँ से उसी घटना पर वार्तालाप करते हुए घर पहुँचते हैं। अब हमलोग घर पहुंचे फिर मासी का गैस आ जाए इसके लिए पैसों की व्यवस्था में जुटे हुए है और हर हाल में मासी की पैसों को लौटना हैं। किन्तु प्रशासन की इस नीति को मैं अभी भी नहीं समझ पाया कि क्या आज भी सिर्फ गरीबों को ही फ़ाईन भरना पर रहा है और अमीरों के नाम ही काफी है फ़ाईन भरने से बचने के लिए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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