तू गैर की दुल्हन बनके तो दिखा - ग़ज़ल - निरंजन कुमार पांडेय


मायूस क्या होना उनके होने बेगाने से ,
हैं रिश्ते आज भी गहरे मेरे मयखाने से ।

रोग मुनासिब है तो दवा भी है जहाँ में ,
उठा लाऊँगा दवा जाकर दवाखाने से ।

शुक्रगुजार हूँ कि बस आसमां सलामत रहे ,
क्या फर्क पड़ते हैं दो -चार तारे टूट जाने से ।

जिंदगी में ठोकर से यहाँ कौन भला डरता है ,
ठोकर का वास्ता है इक दिन सुधार में आने से ।

इतनी भी टूटा हूँ तेरी बेरूखी से कि 
खूब रो पडूँगा मैं तेरे मुस्कराने से ।

और तू गैर की दुल्हन बनके तो दिखा ,
मैं भी बाज नहीं आऊँगा जश्न मनाने से ।


निरंजन कुमार पांडेय

अरमा लखीसराय -बिहार

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