निखिल पाण्डेय श्रावण्य - रीवा (मध्यप्रदेश)
योद्धा - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
बुधवार, जुलाई 02, 2025
दृग् ग़िलाफ़ करो तुम ग़ौर से देखो
हैं कितने युद्ध लड़े हुए।
मृत्यु हैं कितनी बार डराई
फिर भी डटकर खड़े हुए॥
डर भी भयभीत है हमसे
ज़रा निकट न आता हैं।
कष्ट वेदना विस्मृति हो जाती
जब क्रोध विकट छा जाता हैं॥
विजय भले प्रारब्ध न हो
पर युद्ध बड़ा विकराल करेंगे।
जिधर बढ़ेंगे पग-ए-लोहित
उधर की माटी लाल करेंगे॥
तिलक भले ही मिटा हो माथे का
पर, घावों के आभूषण हैं जड़े हुए।
मृत्यु हैं कितनी बार डराई
फिर भी डटकर खड़े हुए॥
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