मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव | Hindi Kavita - Maun Mein Prem Ki Vaani Ho Tum
जब नयन मौन होकर पुकारें तुम्हें,
उन दृगों की कहानी हो तुम।
छाँव बनकर मेरे पथ में चलो,
इस धरा की रवानी हो तुम।

शब्द बिन भी समझ लो हृदय की व्यथा,
सुन सको वो सुनानी हो तुम।
मैं अगर हूँ अधूरा, भटकता हुआ,
तो मेरी ज़िंदगी की निशानी हो तुम।

साँझ बनकर उतरना मेरी बाँह में,
भोर में ज्यों उजानी हो तुम।
मैं रहूँ या न रहूँ इस जहाँ में कभी,
मन में मेरी बसी एक कहानी हो तुम।

दर्द में भी जो मुस्कान दे जाए,
वो मधुर सी रवानी हो तुम।
तपते क्षण में जो शीतल करे,
वो घन-सी बरसती जवानी हो तुम।

सप्तपद चल सकूँ साथ तुम ही रहो,
व्रत समान एक वाणी हो तुम।
मैं तो केवल प्रेम का एक अर्थ हूँ,
और उसका ही ग्रंथी-पाठ, जिज्ञानी हो तुम।


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