भीतर से कोरा-कोरा - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

भीतर से तो कोरा-कोरा,
खाली-खाली।
बाहर सुनाता,
अजब कहानी।

मिट्टी के तन में,
सोने की इच्छा।
दूजों को कुछ समझे न,
बस स्वयं ही अच्छा।
पर की पीड़ा पर हँसी,
अपनी पीड़ा,
जग सुनानी।

ढेर आशा के,
संग निराशा के,
छंद भाषा के।
सभी जीवन हैं,
किस को छोड़ें,
सब आवश्यक हैं,
मन की बयानी।

हेमन्त कुमार शर्मा - पंचकुला (हरियाणा)

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