प्रिय तुम कुछ बोलो - कविता - सुनीता प्रशांत

प्रिय तुम कुछ बोलो - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Priye Tum Kuchh Bolo - Sunita Prasant
प्रिय तुम कुछ बोलो 
झोली शब्दों की खोलो 
थाम लूँगी उन शब्दों को 
सजा लूँगी माथे पर 
सहेजूँगी जीवन भर 
समेट लूँगी उन्हें मन में 
फैला दूँगी मन आँगन में 
ख़ुशबू से सरोबार हवाएँ होंगी 
हर्षित सुरभित फ़िज़ाएँ होंगी 
तुम्हारे शब्दों के सागर में 
सलिला-सी समा जाऊँगी 
या सुरों से सजाकर उन्हें 
गीत कोई मैं गाऊँगी 
पिरो लूँगी प्रेम तागे से 
पहन उन्हें मैं इठलाऊँगी 
ये ही तो हैं मेरी जीवन बहार 
तृषित मन पर सावन की फुहार 
शब्द ही तुम्हारे हैं मेरा संबल 
मेरे नयनों का यही तो है अंजन 
तोड़ दो भावनाओं के तटबंध 
मिटा दो सारे अंतर्द्वंद्व 
द्वार हृदय के सारे खोलो 
प्रिय तुम तो बस बोलो 
कानों में मिसरी घोलो 

सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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