पति-पत्नी का पावन त्यौहार,
व्रत रखकर किया सोलह शृंगार।
चौथ माता से कामना करती वो,
पति को छू न सके मृत्यु का वार।
प्रेम त्याग समर्पण श्रद्धा से इसने,
काल को भी हरा दिया है बारंबार।
पहन हरी चूड़ियाँ माथे पे बिंदिया,
कहती सदा पति ही है मेरा संसार।
डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन' - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)