विजय कृष्ण - पटना (बिहार)
कर्तव्य पथ - कविता - विजय कृष्ण
शुक्रवार, नवंबर 26, 2021
जब मैं अपने काम से घर लौटा,
सूरज भी मेरे साथ थक कर चल पड़ा।
बच्चे जैसे इंतज़ार करते हैं, छुट्टी की घंटी बजने का,
प्रकृति भी इसी अवसर की ताक में थी।
उसके जाते ही वो भी आराम करने लगी।
रात कुछ अलसाई सी उठी थी,
पर जल्द ही चाँद तारों संग खेलने लगी।
रात के कंधों पर ज़्यादा भार हैं,
वह अकेले ही जागती हैं।
रात के पहरे में हम सब फिर सो गए।
अगले दिन मैं, प्रकृति और सूरज साथ ही जगे।
और अपने-अपने कर्तव्य पथ पर चल पड़े।
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