विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
सार्थक पुष्प - कविता - विनय "विनम्र"
बुधवार, फ़रवरी 10, 2021
तन की भूख प्रबल होती है,
फूल की कोमल कलियों से,
रास राग के घृणित कुकृत्य
और अँधेरी गलियों से।
बचपन सड़कों पे सबल समाज का
कफ़न ओढकर चलता है,
जीवन नहीं किताबों में वो,
बस अभाव में पढता है।
सबल समाज यदि बचपन को
फूलों की जगह उठा लेगा,
सड़को की भीषण दुर्गति से
स्कूलों तक पहुँचा देगा।
मैं कहता हूँ तब भी गुलाब में,
खुशबू और अधिक होगी,
जीवन की सुन्दर क्यारी में,
बगियाँ बहुत सी महंकेगी।।
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