किताब - कविता - निशान्त कुमार सोनी

हर रोज कई किताबों से गुज़रता हूँ,
पन्नों को उलटता हूँ, पलटता हूँ,
हर बार बात वही होती है,
जिसे मैं पढ़ता हूँ,
किरदार वही,
चेहरे वही, कुछ नया सा हो
पर पुराना ही फिर चुनता हूँ,
कितनी बार सीखी हमने, रास्तों में गुज़रना,
किसी पहचाने से मोड़ में,
किसी से रास्ता पूछता हूँ,
हुआ बहुत सफ़र, और रास्ते बहुत,
अब ना पढ़ना ना समझाइश कोई,
ना सीखने-सिखाने की फरमाइस कोई,
बस भूलता ही जा रहा हूँ,
जैसे है लगी समाधि कोई।

निशान्त कुमार सोनी - जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

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