कोई तुम्हारा नहीं लगता - ग़ज़ल - प्रवीन "पथिक"

तुम्हारा हर दिन का रूठना गंवारा नहीं लगता।
मेरा हर दिन का मनाना प्यारा नहीं लगता।।

आख़िर कौन-सी बात है जो नापसंद है तुझे।
चाहे जितना प्यार दूँ तुम्हे, ढेर सारा नहीं लगता।।

अब तो दिल करता है, छोड़ दूँ, चला जाऊँ कहीं।
साथ रहकर भी तू कभी हमारा नहीं लगता।।

तेरी ख़ुशी के लिए क्या-कुछ नहीं किया हमने।
फिर भी कभी तू , मेरा सहारा नहीं लगता।।

किसी को चाहना, प्रेम करना; सब व्यर्थ है 'पथिक'।
अब कोई भी इस दुनिया में तुम्हारा नहीं लगता।।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos