जब चाहे लिखूँ सुबह या शाम लिखूँ,
वीरों का शौर्य यारो मैं सरेआम लिखूँ।
कुछ भी लिखूँ कविता-ग़ज़ल लिखूँ,
हर एक शब्द मैं वीरों के नाम लिखूँ।
डायरी के हर एक पन्ने पर पैग़ाम लिखूँ,
कहीं भी लिखूँ क़ुर्बानी के कलाम लिखूँ।
जय हिंद, जय भारत, व इंकलाब लिखूँ,
दिल से क्रांतिकारियों को सलाम लिखूँ।
विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)