प्रेयसी का ख़त - कविता - मनोज यादव

बंद लिफाफे में आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त
छुपते छुपाते आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

लिफाफे की कोर-कोर कुंद हो गयी थी
लगता है सबसे लड़ के आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

आँसुओ का अंबार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।
धड़कनों का हिसाब लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

मैं उसे पढू उससे पहले ही
नमी थी मेरी भी आँखों में,
लगता है पीड़ाओ का पहाड़ लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

कुछ हृदय के घाव, कुछ गुजरे लम्हे
और कुछ मन के भाव 
सब अंदार-ए-बयां लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।
शिकायतों का सार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी ख़त।

व्याकुलता है ख़त पढ़ने को
फिर भी सिसक-सिसक के रोउ,
लगता है हादसो का ज्वार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

शिकायतों का अम्बार  लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।
भावनाओ का ज्वार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

शायद चढ़ी हुई धड़कनों पर
अख्तियार नही आज उनका,
इसलिये टेढ़े-मेढे सवाल लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

बोसो की बौछार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त
होठो का आकार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी ख़त।

अभी भी उनकी गर्माहट
बरकार है मेरी साँसों में,
लगता है फिर से शाम-ए बहार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

पाजेब की झंकार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त
चूड़ियों की खनकार लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

उनके झुमके पर थिरकती थी
मेरी प्रत्येक धड़कने,
लगता है धड़कनों का हिसाब लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

मिलन का पयाम लेकर आया,
मेरी प्रेयसी ख़त
आँखों का जाम लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

इस बार मिलकर
अख़्तर हो जायेंगे हम दोनों,
इसलिए मेहबूब का पैगाम लेकर आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

बंद लिफाफे में आया,
मेरी  प्रेयसी का ख़त
छुपते छुपाते आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

लिफाफे की कोर-कोर कुंद हो गयी थी
लगता है सबसे लड़ के आया,
मेरी प्रेयसी का ख़त।

मनोज यादव - मजिदहां, समूदपुर, चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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