सुना है कि तुम - कविता - कपिलदेव आर्य

सुना है कि तुम पाई-पाई का हिसाब रखती हो,
अपनी बड़ी दुकान में ऊंचा मुक़ाम रखती हो!

सुना है, तुमने हीरे-जवाहरात बेशूमार जुटा लिये, 
पर बेमुरव्वत, रिश्तों के सारे अरमान जला दिये!

बताओ तो, दुकान में क्या-क्या सामान रखती हो?
हमने भी तो बेशक़ीमती मौहब्बत लुटा दी तुम पर-

हम जो ज़ाया कर चुके, उस मौहब्बत का हिसाब दो?
तुम्हारी पलकों के ख़्वाब से जला दिये ख़्वाब अपने,

दे सकती हो तो उन जले हुए ख़्वाबों का हिसाब दो?
तुम्हारे आंसुओं को हमने अपनी आँखों से बहाया !

अरे संगदिल, पहले मेरे उन आंसुओं का हिसाब दो?
तेरे भोले-भाले चेहरे के आगोश में इस कदर खोए,

न इधर के रहे, न उधर के, इस धोखे का हिसाब दो?
बर्बाद कर दी, हमने तेरे नाम अपनी हसीन जवानी, 

अरे तुम, दुनिया से अंज़ाम ए वफ़ा क्या पूछती हो?
दे सकती हो मेरी तमाम वफ़ाओं का हिसाब दो?

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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