उजड़े हुए चमन मे अब पक्षियां नहीं आती,
झुलसे हुए झोपड़ी मै गाये नहीं आती।
मैले आँचल से अब दूरगंध नहीं आती,
गिरे हुए महल मे अब मोहब्बतें नहीं आती।
मुसिबत जब सिर पर आयी
तो दोस्त नही आते,
दर्द जब बढ़ा घुटने में तो
वावफाये भी नही आती।
इश्क़ जब हुआ ध्वस्त तो
प्रेमिकाये भी नहीं आती
उजड़े हुए चमन मे अब पक्षियां नहीं आती
अब तो साहित्य रचना मे खूबसूरत कवितायें नहीं आती
पहाड़ो को काटकर दफन कर दिया
जड़ी बुटियो को तो खत्म कर दिया
अब तो संजीवनी के लिए
कोई हनुमान भी नही आते
काटा और गिराया सारे वृक्षो को
तालाब, जलाशय, झरनो को कर दिया खत्म
अब तो पशू पक्षी भी यहां नहाने नही आते
उजड़े हुए चमन मे अब परिंदे नही आते
अब तो यहां चमन मे पक्षियां रात बिताने नही आती
झुलसे हूए चमन मे गोपियां भी नहीं देखती
उजड़े हुए चमन मे पक्षियां नहीं आती
उमाशंकर मिश्र - मऊ (उत्तर प्रदेश)