बिंदिया - कविता - भरत कोराणा

शीर्ष पर प्रेम की मजबूती
हृदय में अपनापन लिए
महकती रही है बिंदिया। 
शिष्टा की क्यारी है वो
मर्यादा का गीत है वो
समर्पण करती है बिंदिया। 
सहन करने पर पत्थर
मौन होने पर बिन बन
गाती रहती है बिंदिया। 
आपे मै अपने को समेटे
जीवन संगीत को लिखती
जीती है बिंदिया। 

भरत कोराणा
जालौर (राजस्थान)

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