पुरानी तकदीर रहने दो - ग़ज़ल - निरंजन कुमार पांडेय


या खुदा अमीर को अमीर रहने दो ,
बर्शते मुझमें थोड़े बस जमीर रहने दो ।

कुछ नहीं था उसमें मगर वो थी जरूर ,
मेरी वही जो पुरानी तकदीर रहने दो ।

उन्हे मिलते हों मेरे दर -बदर भटकने से सकूँ ,
या खुदा फिर मुझे ताउम्र फकीर रहने दो ।

ताकतों की खाव्हिश जाहिलों को होती है ,
तेरे इबादत के लायक मेरा शरीर रहने दो ।

कहर मुझपे बरसा जितना मन करे तेरा ,
उबर जाऊँ ये मुझमें तदबीर रहने दो ।


निरंजन कुमार पांडेय
अरमा लखीसराय , बिहार

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