मैने एक चांद को चाहा है - कविता - चीनू गिरि गोस्वमी


मैने एक चांद को चाहा है 
कभी उसे पाने की ख्वाइश नही की 
रोज हम ख्यालों मे बाते करते है
मगर कभी मिलने की चाहत नही की
वो मुझसे प्यार करे या ना करे 
मगर मैने कभी उसे शिकायत नही की
वो मेरी जिंदगी का खुबसूरत राज है 
जिससे मैने सब से छिपाकर तन्हाई मे बात की 
 मैने उसे अपनी शायरी मे छिपा रखा है
मगर उसका नाम लिखने जुररत नही की
उसके बिना मेरी जिंदगी बहुुत उदास है 
मगर वो खुश रहे लवों ने हमेशा दुआ की 
उसका नाम भी उसकी तरह प्यारा है
वो खुद तो पागल है उसने मुझे भी पागल की 
अब वो मेरा हो या ना हो 
मैने अपनी ये जिंदगी उसके नाम की 
मैने एक चांद को चाहा है 
कभी उसे पाने की ख्वाइश नही की


चीनू गिरी गोस्वामी
देहरादून उत्तराखंड

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