सहर को सहर नहीं कहता - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

सहर को सहर नहीं कहता - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा | Hindi Kavita - Sahar Ko Sahar Nahin Kahta - Hemant Kumar Sharma
परहेज़ करता है वह खिलखिलाने से,
कि अपने मन की सरे-आम बताने से।

यूँ चुप रहता है
और आँखों से ख़ूब बोलता है,
जाने क्या आता है ज़ुबाँ पे पैमाने से।

तुझे मालूम नहीं आगे का
दोस्त मेरे,
छोड़ जूझने का मन बनाने से।

खाएगा फिर धोखा अपने मित्रों से,
बाज आ अपने मन की सुनाने से।

सहर को सहर नहीं कहता है वह,
रुकता नहीं शहर को जंगल बताने से।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos