साक्ष्य - कविता - बृज उमराव

साक्ष्य - कविता - बृज उमराव | Hindi Kavita - Saakshy - Brij Umrao | साक्ष्य पर हिंदी कविता
शिलालेख प्रस्तर पट छतरी,
दीर्घायु पादप चाँद सितारें।
देते हैं प्रत्यक्ष गवाही,
कभी किसी से वह न हारें॥

परिवर्तन है प्रकृति प्रदत्त,
इसका होना निश्चित है।
ज्यों मौत सभी की अटल सत्य,
जीवन नाश सुनिश्चित है॥

बीती सदियाँ युग बीते,
अंकित है सब ग्रन्थों में।
सूरज चाँद सितारे अम्बर,
बंधे हुए संम्बन्धों में॥

प्रकृति श्रष्टि परिवर्तनदायी,
मृत्यु अटल अविनाषी है।
लाख सँजोएँ क्यों इस तन को,
यह तन भी आभासी है॥

नाले नदी झील हिम खंड,
गगन छूती पर्वत की चोटी।
कब क्या कैसे होने वाला,
श्रष्टि स्वयं निर्धारित करती॥

परिवर्तन ही पूर्ण सत्य है,
सदा न कोई रह पाया।
जिसने जैसा कर्म किया है,
वैसा उसने फल पाया॥

हर दिन नव इतिहास श्रजित हो,
सुलभ साक्ष्य संचित होगा।
आने वाली नव पीढ़ी हित,
पन्नों में अंकित होगा॥


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