राजेश राजभर - पनवेल, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
अंतिम यात्रा - कविता - राजेश राजभर
शुक्रवार, जून 13, 2025
आत्मा अविजित अमर है–
सर्वविदित है नश्वर काया!
अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये,
मैं कहाँ इसे झूठलाया!
बंधन मुक्त नहीं थे मुझसे,
अभिभावक मेरे अपने,
मेरा बचपन, गाँव की गलियाँ
सहपाठी, सहचर, सपने!
जन्म सफल है– या निष्फल है,
भूतकाल या– वर्तमान है,
अविचलित अस्तित्व मेरा–
अक्षुण्ण महार्घ है– संसृति में,
आज मेरी, उच्च– आकांक्षाएँ
शून्य हो गई व्योम में–
जिवित हो– उठेगा वृत्तान्त,
मेरे पक्ष– अपक्ष में!
अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये,
मैं कहाँ इसे झूठलाया!
है सत्य तुम्हारा प्रेम अटूट,
छलके ज्यों नभ के बादल,
चूड़ी माटी– मिटा महावर,
धूल गए– आँखों के काजल,
मुझसे कहा नहीं जाएगा–
मेरी "शवयात्रा" है आज,
देहरी छोड़ निकल पथ पर–
क्या तुम दोगी मेरा साथ??
संज्ञाहीन– बलहीन तन– सोया
अंततः विलाप– सघन में!
अपलक निहारता तुमको–
धुन्ध की अछोर वन में!
अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये,
मैं कहाँ इसे झूठलाया!
श्मशान तक, सखा– स्नेही–
सहकारिता का धर्म निभाएँ!
विनम्र भाव– उच्छ्वास लिए-
मुझपर फूलों का हार चढ़ाए!
मातम की गहराई घोर–
तन विधिवत– लिपटा श्वेतांबर,
मुक्तिधाम के आँगन में–
पंचतत्व है– अकूल सरोवर!
विहान कहाँ– संध्या के गीत–
अन्तिम क्षण की अन्तिम रीत,
तनुज तीव्र– मुखाग्नि लगाया!
अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये,
मैं कहाँ इसे झूठलाया!
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