हमज़ुबा - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

आजकल हमज़ुबा लोग मिलते नहीं ।
हम भी ज़ख़्मों पे मरहम रखते नहीं ।।

झूँठी तारीफ़ हम उनकी कब तक करें ,
इसलिए आजकल कुछ भी लिखते नहीं।।

जाने किस बात पर लोग मग़रूर हैं ,
मिलके भी प्यार से बात करते नहीं ।।

पैंतरे सब ज़माने ने  सिखला दिए ,
इसलिए अब यकीं सब पे करते नहीं ।।

कितने अहसाँ फरामोश हैं आदमी
काम निकला तो फिर याद रखते नहीं।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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