जाल - कविता - मदन लाल राज

जाल - कविता - मदन लाल राज | Hindi Kavita - Jaal  - Madan Lal Raj. मकड़ी और जाल पर कविता
मकड़ी सिद्धहस्त है,
ख़ुद जाल बनाने में।
फिर तरकीब लगाती है,
शिकार को फँसाने में। 

अपने रसायन से वो
बेतोड़ जाल बुनती है।
पकड़ने को कीड़े-मकौड़े
अपने हुनर से चुनती है।

इसी तरह आदमी भी श
ग़ज़ब के जाल बुनता है।
पर अफ़सोस, फँसाने हेतु
आदमी को ही चुनता है। 


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