रीति रिवाज बनाम भावी पीढ़ी - आलेख - बबिता कुमावत

रीति रिवाज बनाम भावी पीढ़ी - आलेख - बबिता कुमावत | Aalekh - Reeti Riwaaj Banaam Bhaavi Pidhi - Babita Kumawat
क्या ऐसे रीति रिवाज उचित है? जो भावी पीढी की शिक्षा को प्रभावित करते हैं, क्या उन रिवाजों पर पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए? जो देश के भविष्य निर्माण में किसी प्रकार का योगदान नहीं दे सकते।
कुछ स्थान आज भी ऐसे हैं यदि उनके हाथ में तराजू के दो पलड़े है, उनमें एक में शिक्षा, बच्चों का भविष्य, व दूसरे में निष्प्रभावी रिवाज। उनके द्वारा दूसरे पलड़े का चयन किया जाएगा। जिसकी एक पढ़ा लिखा व शिक्षित समाज अपेक्षा नहीं कर सकता।
लेकिन इससे भी गहरा चिंतनीय विषय ये है कि पढ़े लिखे समाज के द्वारा भी जब उस लीक को पीटा जाता है। क्या मृतप्राय रिवाज अनुकरणीय हो सकते हैं?
जिनमें से हम ले सकते है - मृत्युभोज, विवाह पर किया जाने वाला अनावश्यक ख़र्च, यहाँ तक कि किसी व्यक्ति की मृत्य होने पर वधू पक्ष के द्वारा दी जाने वाली रक़म, ऐसे कपड़े, एक दूसरे को दिए जाने की रस्में जिनका कोई उपयोग नहीं है।
कुछ समाज ऐसे भी हैं जहाँ ग़रीब व्यक्ति भी मरता है। अपनी शान-ओ-शौकत बरक़रार रखने के लिए। जिन रिवाजों का पालन करने में वह असमर्थ है, करता है।
जबकि स्थिति इतनी भयावह है कि इतने रिवाजों का पालन करने के बावजूद भी अपने पुत्र के विवाह के लिए पुत्री को सामने देना पड़ता है। क्या वह पैसा अपने बच्चों की शिक्षा पर ख़र्च किया जाना उचित नहीं है? क्या यह दृष्टिकोण ग़लत है कि एक लड़की को उचित शिक्षा दिलवाने से दो परिवार सुधरते है?
कुछ जगहों पर तो होड़ा होड़ी लगी रहती है, ध्यान रखा जाता है, कि किस व्यक्ति ने किस रस्म पर कितने पैसे ख़र्च किए? उसकी बराबरी करने का प्रयास अन्य लोग करते हैं।
वही पैसे यदि अपने बच्चों की शिक्षा पर लगाया जाए, तो देश का भविष्य आज से बहुत आगे दृष्टिगत होता।
हाँ, जो आवश्यक है, जो अपनी सभ्यता, संस्कृति का अंग है, जो पैसों वाली संस्कृति को बढ़ावा नहीं देते, उन रिवाजों का पालन किया जाना चाहिए।
राजस्थान में कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ ख़ून के रिश्तों की बुनियाद भी पैसों पर टिकी है। यहाँ तक की भाई-बहन व माता-पिता के संबंध भी पैसों की दुनिया के इर्द गिर्द घूमते हैं।
रिश्तों का स्थायित्व भी पैसों पर निर्भर है, यह सब शिक्षा की कमी के कारण है।
शायद ऐसे समाजों का भी सुधार होता, यदि उनकी संकीर्ण मानसिकता नहीं होती, जो भावी पीढ़ी के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगाते दृष्टिगत होते है।
बच्चों की शिक्षा व भविष्य पर ध्यान देना प्रथम दृष्ट्या उचित प्रतीत होता है।
जो अंधानुकरण कर रहे है वो इस विषय पर पुनर्विचार करें।

बबिता कुमावत - सीकर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos