प्रेम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
शुक्रवार, जनवरी 10, 2025
प्रेम धरा है, प्रेम गगन है,
प्रेम तपन है, प्रेम शयन है।
प्रेम श्वास है, प्रेम प्राण है,
प्रेम जीवन का संज्ञान है।
किरणों जैसा कोमल स्पर्श,
सागर जैसा गहरा हर्ष।
फूलों की महक, पवन का गीत,
प्रेम सृष्टि का मधुर पुनीत।
प्रेम अडिग है, पर्वत जैसा,
प्रेम सरल है, जलसा वैसा।
मौसम की हर बदलती छवि,
प्रेम की अजर-अमर प्रवृति।
दीप जलाए तम का कोना,
प्रेम सिखाए सत्य का सोना।
शीतल चाँदनी, सुरभित बयार,
प्रेम करे हर बंधन पार।
प्रेम भक्ति, प्रेम बलिदान,
प्रेम से ही जग का निर्माण।
राधा का कृष्ण से संवाद,
प्रेम से जन्मे हर आव्हान।
बिन प्रेम के जीवन सूना,
मन मरुस्थल, हृदय अजनबी दूना।
प्रेम वही जो चुप रह जाए,
पर हर धड़कन में छवि दिखाए।
प्रेम विरह में तपती ज्वाला,
प्रेम मिलन में अमृत प्याला।
आँसू का मोती, हँसी का गीत,
प्रेम से हर सुख-दुख जीत।
प्रेम कथा है, प्रेम कहानी,
प्रेम जीवन की अमृत वाणी।
प्रेम ही पूजा, प्रेम ही साधन,
प्रेम से ऊँचा नहीं कोई यत्न।
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