गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)
गीता सार - कविता - गोकुल कोठारी
मंगलवार, जुलाई 26, 2022
धर्म विरुद्ध है नीति जाकी
कोई टार सका नहीं विपदा वाकी
भूल गया तू एक ही क्षण में
किस कारण तू खड़ा है रण में
समझ यहाँ तेरा कौन सगा है
सब सोए हैं कौन जगा है
भरी सभा जब नारी विकल थी
भीष्म, द्रोण की तब कहाँ अकल थी
छीना हक़ जब कहाँ वो सयाने
अपना वही जो अपना माने
सिंह सियार के रिश्ते कैसे
देख जरा रिपु दिखते कैसे
वाण तुरीण विक्षुब्ध हुए क्यों, शोभा ये तेरे हाथों की
बिना यामिनी तो अँधेरा, दुर्गति देखो उन रातों की
धर्म युद्ध नहीं अकारण धर्म विरुद्ध है उनकी नीति
बिना युद्ध अधर्म न हारे निभा अर्जुन जग की रीती।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर