खिल रहा जासौन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

खिल रहा जासौन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार | Navgeet - Khil Raha Jaasaun - Avinash Beohar
सुनसान घर में साँकल
बजा रहा है कौन।

गूँजी सन्नाटे में 
तूती की आवाज़।
उड़ रहा तोते की
गर्दन दबोचे बाज़।

कलरव बंद हुआ
बाग़ में पसर गया मौन।

पागल-सा हुआ
प्रजातंत्र घूमता-फिरता।
झील की नंगी
आँखों में आँसू तिरता।

एक होना चाहिए था
हो गया है पौन।

परिवार में है फूट पड़ी
ऐसा क्यों है।
और पुरवाई रूठ पड़ी
ऐसा क्यों है॥

डाली अमलतास की है
खिल रहा जासौन।


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