प्रकृति पीड़ा - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'

प्रकृति पीड़ा - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित' | Awadhi Geet - Prakriti Peeda - Sanjay Rajbhar Samit. प्रकृति पर अवधी गीत
होत रहेला धूप-छाँव चिरई।
जनि करा करेजवा में घाव चिरई॥
ग़लती के पुतला हवे मनई।
मत बढ़ावा घर से पाँव चिरई।
जनि करा...

घरवा में चिरई उछल कूद करा।
रखल बा दाना पानी चुगल करा।
खोतवा बनालय जहाँ, तोहार मरजी।
लेकिन छोड़ा न साथ लगाव चिरई।
जनि करा...

नाही बा मड़ई ना कच्चा मकनवा।
पथरे क घर बनल जीव क जवलवा।
तोहरे ख़ातिर नाही भले कूसा कासा–
लेकिन समझा समयिया के बहाव चिरई।
जनि करा...

कीड़ा मकोड़ा न अब तोहके मिलिहय।
एडजस्ट करा चिरई रोटिया खिअईबय।
'समित' बनहिंय फिर से ऊ गाँव चिरई।
जनि करा करेजवा में घाव चिरई।


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