शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)
जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
गुरुवार, जनवरी 30, 2025
अरे! 'अंशुमाली' लघु जीवन फिर भी चलते जाना है।
नंद नाले कंटक वन गह्वर में भी बढ़ते जाना है।
जीवन के पन बीत रहे हैं फिर भी संबल मत खोना–
निविड़ पंथ में भी दीपक सा झिलमिल जलते जाना है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
सुरज देव किरणे फैलाओं - मुक्तक - कुन्दन पाटिल
आठ मुक्तक पच्चीस मुहावरे - मुक्तक - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जश्न-ए-आज़ादी - मुक्तक - परवेज़ मुज़फ्फर
नव उमंग नवरस भरते हैं - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
किसान का दर्द - मुक्तक - संजय राजभर "समित"
कब ढले शाम अनज़ान समझ - गीत (मुक्तक) - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर