महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)
आँखों को ख़्वाब दीजिए - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
शनिवार, मई 01, 2021
हर आँखों में ख़्वाब दीजिए।
बस हौसलों में ताब दीजिए।
मुल्क की तक़दीर जो बदले,
हर हाथ में किताब दीजिए।
नफ़रत मिटे इस जहां से,
मोहब्बत लाजबाव दीजिए।
हर उस नापाक दिल को,
बस बद्दुआ ख़राब दीजिए।
इस जहां में धोखे बहुत,
भरोसे का अहबाब दीजिए।
हुए जो गुनाह के सिलसिले,
गुनाहों का हिसाब दीजिए।
'अनजाना' लुत्फ़ मुज्जसम लेे,
मुस्तक़बिल का ख़्वाब दीजिए।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
बात मन की कभी तो बताया करो - ग़ज़ल - डॉ॰ आदेश कुमार पंकज
कहीं पे चंदर उदास बैठा - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
नसीब अपना जला चुके हैं - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
हमने फहराकर तिरंगा कर दिया ऐलान है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी 'नितान्त'
आओ कुल्हड़ में चाय पीते हैं - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर