संदेश
संघर्ष - कविता - अनूप अंबर
तिनका-तिनका बीन-बीन कर, वो अपना नीड़ सजाता है । हवाओं का अभिमान तोड़ कर, वो लक्ष्य को अपने पाता है॥ ये मेहनत का आराधक है, आशाओं की लड़…
उससे पूछा कुछ दिन पहले - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 उससे पूछा कुछ दिन पहले, बनकर मीत साथ में रह ले। रिश्ते को मज़बूती देकर, फिर जो जी…
मन में राम बसे हैं - कविता - पंकज कुमार दीक्षित
जो मात-पिता की सेवा करता, उस मन में धाम बसे हैं। वो भव से पार हुए जिनके, मन में राम बसे हैं॥ चक्र सृष्टि का चलता आया, जन्म मृत्यु फिर …
कौन दोषी? - कविता - अनिल कुमार केसरी
कौन है? जो पेड़ की डालों पर झूल रहा है, कोई मस्ती में आया; या कि अपनी बर्बादी पर मौत से खेल रहा है? लग रहा कोई आम इंसान है, फ़सल बर्बा…
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - कविता - राघवेंद्र सिंह
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी जागी, जाग उठा वीरों क…
लक्ष्मीबाई - कविता - गोकुल कोठारी
विषय नहीं आज यह, वह नर थी या नारी थी, लेकिन थी हाहाकारी, आदिशक्ति अवतारी थी। मातृभूमि की आन पर जब भी बन आई है, नर ही क्या यहाँ नारी भी…
पुष्टिकारक बाजरा - गीत - उमेश यादव
सर्वश्रेष्ठ पोषक शरीर का, नियमित इसको खाएँ। पुष्टिकारक बाजरे को हम, भोजन में अपनाएँ॥ सर्वगुण संपन्न अन्न यह, बल आरोग्य बढ़ाता है। हृष्…
एक ठिगना पौधा - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'
एक विशालकाय तरु के नीचे, ख़ुद उसकी पत्तियों से ढका हुआ, पृथ्वी का अर्द्ध छिपा भाग, जिसको देखते भावों में एक अभिव्यक्ति का नया अवतरण सीध…
रेगिस्तान - कविता - सुनील कुमार महला
मैं थार बोल रहा हूँ गर्मियों में उबलती रेत, सर्दियों में शून्य से नीचे तापमान शुष्क लेकिन विशाल तरंगित मेरी बालुका सतह चाँदी की रेखाओ…
क़दम-क़दम - कविता - ऊर्मि शर्मा
फ़ुर्सते-पाबन्दीयाँ रास्ते-पगडंडियाँ। क्षितिज को छूती मंज़िलें, हौसलो के इम्तिहान। हर तरफ़ बिछा कुहासा, हादसे क़दम-क़दम। फूल काँटें दरमिय…
आज क्रांति फिर लाना है - कविता - मोहित त्रिपाठी
डूब रही जो शक्ति अंधकार के घेरों में, फँसती जा रही जो कलि काल के फेरों में, उसको जगा पुनः ज्योति से ज्वाला बनाना है आज क्रांति फिर…
यह दुनिया एक भ्रम है - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
हम जिस दुनिया में रहते हैं, वो हक़ीक़त नहीं है, एक भ्रम है। हम एक पूरे भ्रम और अधूरे सच के बीच जी रहे हैं, जो भ्रम किसी भी समय पूरा हो स…
सुनो प्रिय - कविता - बिंदेश कुमार झा
यह जो तुम्हारा मेरा प्रेम है, यह काग़ज़ों तक सीमित नहीं। पुष्पों के सुगंध से भी परिभाषित नहीं॥ यह जो तुम्हारा समर्पण है, प्रशंसा इसके तु…
मीत तुम मेरे - गीत - राकेश कुशवाहा राही
मीत तुम मेरे गीत बन गए, प्रीत की तुम रीत बन गए। जब भी मै अकेला रहा हूँ कभी, अंधेरों से डरकर छुपा हूँ कही, मीत तुम मेरे दीप बन गए। समंद…
चमक - कविता - संजय राजभर 'समित'
न ठनक न खनक न सनक बस चुपचाप धैर्य से शांति से अनवरत सही दिशा में होश और जोश के साथ अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास से अपना कर्…
उम्मीद - कविता - विजय कुमार सिन्हा
एक सुंदर भविष्य की आश में मात-पिता बड़े शहर में छोड़ने जाते हैं अपने बच्चों को। लगता है अपनी साँसे हीं छोड़े जा रहे हैं। पर यह विछड…
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद रघुनाथ महतो - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
अमर शहीद रघुनाथ महतो जन्म - 21 मार्च, 1738 मृत्यु - 5 अप्रैल, 1778 तत्कालीन बंगाल के मानभूम अर्थात छोटानागपुर के जंगलमहल जिले के अंतर्…
जिज्ञासा - कविता - रवि तिवारी
पहली बार तुमसे मिलते हुए मैंने नहीं मिलाया हाथ, तुम्हें जानने में नहीं की कोई जल्दबाज़ी। पहली बार मिलने पर मैंने बचाए रखी तुमसे दूसरी …
आ चाँद तुझे मैं निहारा करूँ - कविता - साधना साह
आ चाँद तुझे मैं निहारा करूँ, बीती बतियाँ मैं तुझसे साझा करूँ। सखि देखो सँवर कर पूर्णिमा का चाँद फिर आया, अम्बर जैसे आज धरती पर उतर आया…
अररररे! ये क्या कर आए तुम - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ऊलुन मफ़ऊलु फ़ऊलुन फ़ा तक़ती : 122 221 122 2 अररररे! ये क्या कर आए तुम, उजाड़ कर धूप के साए तुम। इक अपना घर बनाने के वास्ते,…
मैं बुद्ध होना चाहता हूँ - कविता - इमरान खान
मैं बुद्ध होना चाहता हूँ, मनुष्य की पीड़ा का। कि वक़्त और वक़्त के दो टुकड़ों के बीच अतीत और वर्तमान की खाल पर, आदिम युगों सा, मैं मनुष्…
दशरथ माँझी - कविता - गोकुल कोठारी
फड़कती भुजाओं का ज़ोर देखा, क्या ख़ूब बरसे घनघोर देखा। कर्मों की बहती दरिया देखी, उससे निकलती नई राह देखी। इतिहास रचने की चाह देखी, माँझ…
हे हिन्द की धरोहर! - कविता - राघवेंद्र सिंह | पण्डित जवाहरलाल नेहरू पर कविता
हे रत्न! भूमि भारत, हे हिन्द की धरोहर! हे हिन्द स्वप्नदृष्टा! हे हिन्द के जवाहर! सच्चे सपूत तुम थे, इस हिन्द वाटिका के। तुम ही यहाँ थे…
बिरसा मुण्डा - कविता - रमाकान्त चौधरी
क्रांति की अमिट कहानी था। वह वीर बहुत अभिमानी था। डरा नहीं वह गोरों से, लहज़ा उसका तूफ़ानी था। जल जंगल धरती की ख़ातिर, जिसने सबकुछ वारा थ…
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद बुधू भगत - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
15 नवम्बर, 2022 को झारखंड 22 साल का हो जाएगा। 'झारखण्ड स्थापना दिवस' का पावन दिन आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में …