संदेश
कृषक - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कृषक का जीवन काँटों से भरा है, शीत ग्रीष्म बरखा से कब वे डरा है। विपत्तियों के पहाड़ सर पे उठाएँ, वह हँसता चेहरा खेतों में खड़ा है। सा…
पिता - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
पिता शब्द ही अनमोल है, इसका नहीं कोई मोल है। पिता ही संघर्ष का दूसरा नाम है, जिसके बिना जीवन अनाम है! जो उँगली पकड़ चलना सिखाते है, हर…
सबका जीवन आनंदमय बना दे - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
मिले मुंडेर पर, सोंधी-सोंधी ताज़ी हवा का, ये झोंका जो, कभी धूप खिले, कभी छाँव बने कुदरत ने रंग बिखेरा जो। आसमान में, हलचल करती काली घट…
पिता - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
धरा पर जिसने हमको लाया, पकड़ के उँगली चलना सिखाया। पुरुष नहीं वह देव हैं, चरणों में जिनके संसार समाया। बिखरे ना कभी भविष्य हमारा, संस्…
बारिश - कविता - शालिनी तिवारी
बिन मौसम ही आ पहुँची है, यह बारिश कितनी अच्छी है। मिट्टी की ख़ुशबू सौंधी सी, और हवा भी महकी-महकी है। दिन में ही चाँदनी खिल गई, तपती हुई…
तुम मुझसे कह रही थी - कविता - पारो शैवलिनी
दो दिन की मुलाक़ात में दुनिया बदल गई थी। हम तुम में खो गए थे तुम मुझमें खो गई थी।। तन्हाईयों में पाकर किया प्यार मुझको जी भर पागल स…
अच्छे पड़ोसी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
लिफ़्ट से अपने दसवीं मंजिल स्थित कमरे में चढ़ते हुए मैंने नोटिस पढ़ा "श्रीमती मुखर्जी का एक सौ रुपए का नोट कहीं गुम हो गया है। पान…
क़दम - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'
क़दमों में क़दम रख चली थी मैं किसके साथ वो क़दम मुझे याद नहीं किसका रहा वो साथ धुँधली अमिट कुछ यादें हैं बहुत मजबूत थे, वो पाँव,हाथ न लड़…
छाँव सा है पिता - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ग़लतफ़हमी है के अलाव सा है पिता, घना वृक्ष है पीपल की छाँव सा है पिता। लहजा थोड़ा अलग होता है माना पर प्रेम अंतस में लबालब भरा है, अपने प…
मेघ - कविता - स्नेहा
बादल आते हैं चले जाते हैं... बिन बरसे फिर आते हैं आसमाँ पे छाते हैं चले जाते हैं... बिन बरसे आज निवेदन करती हूँ... ऐ मेघ! अबकी जो आए ह…
तेरी यादें - कविता - रेखा टिटोरिया
यादों के गलियारे से जब भी पीछे जाती हूँ तेरी यादें तंग करती हैं। यादों के तानो बानो से कभी उधेड़ूँ कभी बनूँ इन उलझे सुलझे धागों में जब…
सजन अब आने वाले हैं - गीत - अभिषेक मिश्रा
पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! आने वाले हैं सजन अब आने वाले हैं!! पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! अंतर्मन के पट तू …
ज्ञान की खोज - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ज्ञान की खोज में हम मृगतृष्णा की तलाश जैसे भटकते रहते हैं, अपने अंदर झाँकना तो नहीं चाहते हैं, ज्ञान को लेना ही नहीं चाहते। बस अपनी बे…
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - कविता - राघवेंद्र सिंह
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी जागी, जाग उठा वीरों क…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
पहली मुहब्बत - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
हृदय पत्रिका पर प्रणय की कहानी, नहीं भूल पाया वो यादें पुरानी। हमारी हक़ीक़त थी वो, पहली मुहब्बत थी वो। नयन से नयन जब ये परिचित हुए थे, …
ए बदरी - भोजपुरी गीत - धीरेन्द्र पांचाल
सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी, ए बदरी। कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी। देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी। बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी।…
नौका - कविता - संजय कुमार चौरसिया
नौका तेरी चौका में गुण कितने हैं, क्या जाने कोई? इस पार किनारे से लेकर उस पार किनारे तक जाती। उस पार लगाते धीरे-धीरे, कितने उथल-पुथल …
बढ़े जा रहे हैं - ग़ज़ल - संजय राजभर 'समित'
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 बढ़े जा रहे हैं, चले जा रहे हैं। सद गुरू कृपा बिन, फँसें जा रहे हैं। चकाचौंध माया, ठगे जा रहे हैं।…
आओ हम भी कुछ त्याग करें - कविता - ईशांत त्रिपाठी
वन/विपिन में एक वनराज था भूखा, देख रहा था इधर उधर। थोड़ा सा आगे चलते ही, दिख पड़ा नवजात गौ-शावक युगल। भूख से खूँखार गर्जन करते, जैसे ह…
पर्यावरण संरक्षण - कविता - रमाकांत सोनी
कुदरत का उपहार वन, जन जीवन आधार वन। जंगल धरा का शृंगार, हरियाली बहार वन। बेज़ुबानों का ठौर ठिकाना, संपदा का ख़ूब खजाना। प्रकृति मुस्कुरा…
नवजोत उमंगें हर पल मन - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवजोत उमंगें हर पल मन, उल्लास नवल हो जाता है। नव ध्येय भोर कर्त्तव्य किरण, विश्वास सबल बन जाता है। नित नवल सोच नव शोध सुपथ, उन्मुक्त उ…
बेटी - लघुकथा - डॉ॰ यासमीन मूमल 'यास्मीं'
(ऑल इंडिया अस्पताल का कैंसर वार्ड) याशी - माँ अब कैसी तबियत है? माँ - घबराओं नहीं बेटा बेहतर हूँ। याशी - मगर... माँ मुस्काते हुए पगली …
अहसास - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'
आज फिर से अहसास हुआ मेरा ख़ुद में ना होने का साँसे चल रही है, धड़कनों की रफ़्तार तेज़ है। गूढ़ तन्हाई तन में, अपना रास्ता बना रही है म…
पथ के पत्थर - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
कुछ उठाते कुछ गिराते कुछ चुभते कुछ सहलाते। कितनी तरह के होते हैं ये यात्रा पथ के पत्थर हमारे।। कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की कुछ ड…