संदेश
बगुले पंख तुम्हारे - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कितनी राजनीति खेलेंगे बगुले पंख तुम्हारे? जिजीविषा त्यागी मौनी व्रत एक पैर तन साधे। कोई मीन दिखाई देती खाते कह कर राधे। आज झील कल सरित…
विजयादशमी - कविता - रमाकांत सोनी
हर हाल में हर काल में अभिमानी रावण हारा है, अहंकार का अंत हुआ सच्चाई का उजियारा है। विजयदशमी विजय उत्सव दशहरा पावन पर्व, मर्यादा पुरुष…
जीवन-काया - कविता - सुरेंद्र प्रजापति
अरी माधुरी, तृप्त हो जाते स्वर-रस की, कोमलता से। स्रवण करते नेह के मोती, भू के, करुण शीतलता से। बन्धु, देख लो महाजीवन में नश्वरता के न…
बनता वो सिकंदर - दोहा छंद - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
मिलता है हर्गिज़ नहीं, फ़ुर्सत का कुछ वक़्त। पूजा समझें कार्य को, न समय गंवाए व्यर्थ।। करते हैं चिंता बहुत, सिर पे बोझ अनेक। परहित पर उपक…
भूख - कविता - डॉ॰ सिराज
शाम को वापस आना, और कुछ लेते आना। कल से संभाले रखा है इन्हें, समझा-बहला कर। अब और सहा नहीं जाता, बीमारी में भूख को। देखो इनकी आँखें धस…
आईना - कहानी - अंकुर सिंह
"बेटा सुनील, मैंने पूरे जीवन की कमाई नेहा की पढ़ाई में लगा दी, मेरे पास दहेज में देने के लिए कुछ भी नहीं है।" शिवनारायण जी न…
मेरा परिवार मेरी आन - कविता - अर्चना कोहली
संस्कारों के माणिक्य से सुंदर परिवार बनता है, त्याग-विश्वास डोर से प्यारा घर-संसार बनता है। परिवार से मिलती है वट वृक्ष-सी मज़बूत छाँव…
पति पत्नी का प्रेम - कुण्डलिया छंद - विशाल भारद्वाज 'वैधविक'
जीवन की सारी व्यथा, का रहता है तोड़। पति पत्नी का प्रेम ही, है ऐसा गठजोड़।। है ऐसा गठजोड़, प्रेम हैं सदा निभाते। प्रेम रहे जब साथ, प…
नव शक्ति स्वरूपा - कविता - सोनल ओमर
नौ दिन में नौ रूपों का आवाहन करूँ, नव शक्ति स्वरूपा का मैं बखान करूँ। प्रथम शैलपुत्री अपार शक्ति धारिणी, परब्रह्म स्वरुप दूसरी ब्रह्म…
कहते हैं जिसको प्यार इबादत समझ उसे - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 कहते हैं जिसको प्यार इबादत समझ उसे, मिल जाए प्यार रब की इनायत समझ उसे…
तरन्नुम - कविता - रेखा श्रीवास्तव
मेरी यादों में बसा जो चेहरा कहीं वो तुम तो नहीं, मेरे ख़्वाबों में रहता जिनका पहरा कहीं वो तुम ही तो नहीं। जिनकी यादों की आहटों से …
माता की जयकार - दोहा छंद - डॉ॰ राजेश पुरोहित
माता तेरे रूप की, महिमा बड़ी अपार। जो जन पूजे आपको, करती बेड़ा पार।। नव रूपों में सज रही, मैया मेरी आज। जयकारे मन से लगे, दिल में बजते स…
माई के मन्दिरवा भीतर - लोकगीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मगिहौं वरदान माई के मन्दिरवा भीतर। 2 गइहौं गुनगान देवी के मन्दिरवा भीतर। 2 सोना न मगिहौं चाँदी न मगिहौं, घोड़ा न मगिहौं गाड़ी न मंगिहौ, …
सबक़ - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
समय तेज़ी से निकल रहा है सबक़ सीखने की सीख दे रहा है, मगर हम मुग़ालते में जीते हैं, समय का उपहास उड़ाते रहते हैं। अब भी समय है सचेत हो जाए…
आभासी जगत - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज
अध्यातम की सीढ़ियाँ, चढ़ना नहिं आसान। हानि लाभ से दूर है, दूर मान सम्मान।। यश अपयश को भूलकर, जपता भगवन नाम। प्रीति रखे भगवान से, जाता…
नदी - कविता - योगिता साहू
नदी रानी की बात निराली, बिना कहे है प्यास बुझाती। आओ हम निर्मल जल बचाए, पानी को बेवजह बहने से बचाए। दो दो बूँद जल की क़ीमत, आज है समझ म…
हे स्त्री! तुम शक्ति की प्रतिमूर्ति - कविता - आशीष कुमार
तुम अष्टभुजा तुम सरस्वती, तुम कालरात्रि तुम भगवती, हे स्त्री! तुम शक्ति की प्रतिमूर्ति। ज्ञान का भंडार खोलती, शंकराचार्य का दंभ तोड़ती…
छवि (भाग १५) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१५) हठवादिता-मोह-मद कारण, मानव के अपकर्ष का। मानव स्वयंमेव पथ चुनता है, विषाद या तो हर्ष का।। मंजिल एक सभी धर्मों की, अलग-अलग हर राह …
स्वीकारो माँ वन्दना - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
करें मातु नित वन्दना, माँ दुर्गा नवरूप। ब्रह्मचारिणी शैलजा, जनता हो या भूप।। ज्ञान कर्म गुण हीन हम, क्या जाने हम रीति। मातु भवानी कर क…
सजा माँ दरबार निराला - गीत - रमाकांत सोनी
सब के दुख हरने वाली, सजा माँ दरबार निराला। रणचंडी खप्पर वाली, दुर्गा महाकाली ज्वाला। सिंह सवार मात भवानी, तेरी लीला अपरंपार। तू है …
मायूस धरती - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
आँचल में मैंने तुम्हे खिलाया, बारिश का निर्मल जल पिलाया, आशियाना बनाने को दिया स्थान, बरसाया मैंने तुम सब पर दुलार। फल खाकर मेरे मिटाई…
नवरात्र का त्यौहार - कविता - रतन कुमार अगरवाला
आया नवरात्र का त्यौहार, बज रहे ढ़ोल नगाड़े, लूँ माँ का आशीष, माँ आयी है मेरे द्वारे। झूम रही सारी धरती, हर्षित हुआ यह चमन, नवरात्र का पर…
प्यारी मइया - लोकगीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मइया री मइया ओ मोरी मइया। हम तोहरे बालक हैं तू प्यारी मइया। मइया री... 2 चन्दा के जैसो मुखड़ो है तेरो, नयनन मा ममता है दाया है। तोहरी …
कर माँ की सेवा - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
ना माँ से बढ़के है जग में कोई। सेवा कर दिल से जगे क़िस्मत सोई।। तेरे लिए कष्ट उठाती है माँ, तुझे दुनिया में लाती है माँ, तुझे अपना दूध प…
अन्नदाता - कविता - समय सिंह जौल
चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर भोर हुए जग जाता है, लिए कुदाली कंधे पर अपने खेत पहुँच जब जाता है। धरा का चीर कर सीना नए अंकुर उगाता है, मेरे…