संदेश
ज़हरीला नाग है यह नशा - कविता - रमाकांत सोनी
अँधेरी दुनिया को तज कर, ज़िंदगी रोशनी से चमकाओ। नशा अवगुण की है खान, गर्त में प्यारे मत जाओ। युवा खैनी का रसपान, रगड़ कर गुटखा खाते हैं…
इसका पैमाना क्या होता है - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती : 22 22 22 22 22 2 सब की नज़रों से गिर जाना क्या होता है, बोलो गिरकर फिर उठ पाना क्या होत…
नारी - कविता - ब्रह्माकुमारी मधुमिता "सृष्टि"
शिव शक्ति का रूप है नारी, सहनशक्ति की परिभाषा है नारी, प्रेम की मूरत है नारी। घर को स्वर्ग बनाती, रिश्तों में मिठास लाती, ख़ुशियों से घ…
भ्रष्टाचार - आलेख - प्रवल राणा "प्रवल"
देश के सामने भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है, भ्रष्टाचार के निषेध के लिए क़ानून है, लोगों को शिकायत भी करनी चाहिए। किन्तु वास्तव में भ्रष…
ज़िंदगी - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"
बे-बाक, बे-हिचक हो कर लिखती हूँ, मैं ज़िंदगी की दास्ताँ, कुछ ज़ख़्म नासूर हो रीस्तें रहें। ज़िंदगी भर ना मिली नासूर ज़ख़्मों की कोई दवा, पीड…
इच्छा शक्ति - कविता - बृज उमराव
जज़्बा ख़ुद में पैदा ऐसा, आसाँ हर काम नज़र आता। बीती बातों से सीख मिली, बिगड़ा काम सुधर जाता।। आत्म नियंत्रण को साबित कर, इच्छा शक्ति प्…
ख़ुद-ग़र्ज़ी का लिबास - ग़ज़ल - प्रवीणा
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल तक़ती : 122 122 122 12 यूँ ख़ुद को ना इतना सताया करो। खुलकर भी कभी मुस्कुराया करो।। माना ये आज़माइशों का दौ…
सुहानी सुबह - बाल कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
नवल प्रात की नई किरण ने, छटा विकट फहराई, दूर हो गया तम तुरंत ही, नई सुबह है आईं। नन्ही नन्ही चिड़ियाँ चहकीं, और चहकते बच्चे, चीं-चीं कर…
उम्मीद की लौ - कविता - रूचिका राय
इतना भी मुश्किल नही है बात बेबात मुस्कुराना, ग़म के अँधेरों में भी दिल में उम्मीद के लौ जलाना। जब भी टूटने बिखरने का ख़्याल आए तुझे, बस …
मेरा मुस्तक़बिल नज़र आता हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
सुनकर ये मधुर धक-धक की आवाज़ ये सच मन में जागा है, हो न हो दिल रुपी सरिता में तेरे नाम का कंकड तसव्वुर ने फेंका है। तुम धरती पर मूर्त क…
विवशता - कविता - प्रवीन "पथिक"
ग़रीबी ने कर दिया घर में क़ैद! बाहरी चकाचौंध आँखों को कर रही धूमिल; इच्छाएँ दफ़्न हो गईं मज़ार के नीचे। और एक पनारा बन गया आँख के कोरों म…
मर्यादा - कविता - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
मर्यादा सिर्फ़ नारी के लिए, चौखट सिर्फ़ नारी के लिए, निभा जाए तो है सुलक्षणा, लाँघ जाए तो है कुलक्षणा। नहीं ख़ुद से ख़ुद का परिचय, कोई निर…
नशा नाश क मूल बा - अवधी गीत - संजय राजभर "समित"
देई डुबाय नइया, इ भाँग दारू गँजवा। सुना हो सईयाँ जी, जर जाई करेजवा।। थू-थू करत बा आज, गँऊवा के लोगवा। सब कुछ बिकाय जाई, छुटी ना ई रो…
वह गुरु है - कविता - आलोक रंजन इंदौरवी
ज्ञान का दीपक जला दे, दुर्गुणों को जो हटा दे, तिमिर मन का ज्योति बनकर जो गहनता से मिटा दे, उच्चतम जीवन बना दे, वह गुरु है। विविध नैराश…
यही सच है - कविता - पारो शैवलिनी
यही सच है, कि- ज़िन्दगी है तो मौत भी होगी। फिर, मौत से डरना कैसा? बावजूद, हमने देखा है हर शख़्स को ताकते हुए दूर कहीं शून्य में। जीवन …
प्यार से जियो - गीत - गगन वार्ष्णेय "गगन"
प्यार से जियो मेरे यार मत करो आपस में तकरार, प्यार बिना तो इस दुनिया में जीना है बेकार। प्यार से जियो मेरे यार... नफ़रत तो वो है भाई अप…
परी - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
उसकी काया संग-ए-मरमर सी, जुल्फ़ घने हैं बादल से। वह मदमस्त बनाती है सबको, रंग-बिरंगे आँचल से। उसकी आँखें है हिरनी सी, कोयल जैसी उसकी व…
ज़ुबान तेज़ या तलवार - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
पुरानी कहावत है कि ज़ुबान कैंची की तरह चलती है और कतर कतर बात को काटती रहती है। ये कहावत उन पर लागू होती है जो बिना सोचे विचारे अनावश्य…
जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज़ था - कविता - प्रभात पांडे
जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज़ था, क्या पता था वो अन्दर से कमज़ोर है। जिन वादों पे हमको बड़ा नाज़ था, क्या पता था कि डोर उसकी कमज़ोर है।। करूँ …
छवि (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) जब देवसृष्टि का नाश हुआ, जल प्रलय प्रबलतम मचा। जल मग्न धरा जन शून्य पड़ी, जीवित केवल मनु बचा। बनी संगिनी चिंता उसकी, उहापोह की थी घ…
तम्बाकू जीवन ज़हर - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
लत तम्बाकू ज़िंदगी, नशा बहुत विकराल। पी बीड़ी सिगरेट को, खा खैनी बदहाल।। तम्बाकू की आदतें, करे मौत आग़ाज़। कैंसर टी.बी. का जनक, दुश्मन मनु…
नारी - गीत - डॉ. देवेन्द्र शर्मा
भोले भगवन के मन में एक आया पूत विचार, उन ने रची एक सुंदर रचना सृष्टि का शृंगार। भेंट कर दिया मानवता को सुंदर वह उपहार, भरकर उसमें …
क़ुदरत की चिट्ठी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हे! इंसान हे महामानव!! तुम्हें एक बात कहनी थी। मैं क़ुदरत, लिख रही हूँ, आज एक ख़त तुम्हारे नाम। मैं ठहरी तुम्हारी माँ जैसी, जो अप्रतिम प…
निरपेक्ष - लघुकथा - ममता शर्मा "अंचल"
अब क्या लिखा है पत्र में तेरी मैम ने? ओह! पत्र नहीं मैसेज में? पत्रों के ज़माने अब कहाँ रहे! मैसेज आते-जाते हैं अब तो मोबाइलों में। मुझ…
मध्यम वर्ग - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
संघर्ष करते रहो, कयोंकि तुम मध्यम वर्ग हो, तुम किसके काम के हो, जो कोई तुमको सहारा देगा। तुम में से आगे निकल चुके, जो आज कामयाब बन बैठ…