संदेश
स्वामी विवेकानंद : आज भी प्रासंगिक - आलेख - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
साल 1886। श्री श्री रामकृष्ण परमहंस देव इहलोक से विदा लेने से पूर्व अपने प्रिय शिष्य नरेन्द्रनाथ दत्त को अपने पास बुलाकर बोले- 'नर…
उठो विवेकानंद बनो - कविता - विनय विश्वा
हे भारत के वीर सपूतों उठो विवेकानंद बनो। अपने भारत नीज को पहचानों तुम उठो तब तक न रुको लक्ष्य न जब तक पा लो तुम। हे भारत के वीर सपूतो…
हिन्दी भाषा - कविता - गणपत लाल उदय
आओं मिलकर ऐसा काम करें हिंदी लिखें और हिंदी में बात करें। बनाएँ हिंदी को दिल की धड़कन मौन शब्दावली भी बोले मुँख पर। मजबूत अपनी यह ब…
ठंड भी सुनती कहाँ - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
उफ़ ये कम्प लाती सर्द का, अलग अलग मिज़ाज है। बेबस ग़रीबो के लिए तो, बस सज़ा जैसा आज है। कुछ वाहहह वालों के लिए, तो मौज़ का आग़ाज़ है। कुछ के …
मधु माधवी - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अरुणाभ विश्व खिलता उपवन, कुसुमित सुगन्ध मादक चितवन, बह मन्द पवन मधुमास मत्त, दिलबाग रसाल मुकुल मुग्धे। सतरंग तितलियाँ उड़…
ज़रूरी तो नहीं - सजल - विकाश बैनीवाल
तुझसे सुबह शाम मिलूँ, ज़रूरी तो नहीं, तेरे नाम पे ग़ज़लें कहूँ, ज़रूरी तो नहीं। बेशक बेइंतहा है प्यार, तुझसे जानेमन, मैं इसका दिखावा करूँ,…
मैंने जो देखा - कविता - दीपक राही
मैंने कच्चे घरों को टूटते देखा, आँसुओं को ज़मीन पर टपकते हुए देखा, तन्हाइयों से ख़ुद को लड़ते हुए देखा, लहरों को किनारों से मिलते हुए दे…
माँ - कविता - प्रतिभा त्रिपाठी
माँ में है मिश्री सी मिठास, उससे है जीने की आस। वो है अपनेपन का अहसास, है हर रिश्ते में ख़ास। कभी बनना पड़ता है उसे, कड़वी दवा। कभी गर्…
आगे बढ़ना सीखा - कविता - श्रवण निर्वाण
ज़रूर! लाख कमियाँ है मुझमें, ये तो मिल जाती हर किसी में, मेरे अपने विचार, नहीं लाचार, स्वतंत्र हैं मेरे ह्रदय के ये उद्गार। मन भावों के…
मुस्कुराते रहो - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
मुस्कुराते रहो गुनगुनाते रहो, फ़ासले न रखो दिल मिलाते रहो। प्यार से बढ़कर दुनिया में और कुछ भी नहीं, मोहब्बतों की पनाहें बसाते रहो। ज़िन्…
तुम्हारी हिन्दी - कविता - विनय "विनम्र"
मत करो मुझे व्याकरण बद्ध, मुझको रहने दो अलंकरण मुक्त, मैं सरस, सरल हिन्दी हूँ मुझको जी जाओ गरल नहीं हूँ अमृत हूँ, विश्वास सहित बस पी ज…
हिन्दी मेरी पहचान - कविता - पुनेश समदर्शी
आज हिन्दी है तो अपनी बात रख पाता हूँ, अंग्रेजी नहीं आती तो कहाँ पछताता हूँ। अपनी कहूँ तुम्हारी सुनूँ ये हुनर हिन्दी है, सच कहूँ तो मेर…
ख़ुद का निर्माण करें - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
मानव जीवन अनमोल है, इस बात से इंकार कोई नहीं करता। परंतु यह भी विडंबना ही है कि ईश्वर अंश रुपी शरीर का हम उतना मान सम्मान नहीं करते, ज…
जाने क्यों लोग - गीत - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
जाने क्यों लोग राह से यों, भटक जाते हैं। जाने क्यों लोग......।। दर्द सह लेते हैं, दवा नहीं लेते हैं। दर्द सस्ता, दवा को महँगी, कह देते…
लौटे बचपन दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
दोहन होती दीनता, दोहन नित अरमान। झेले जग अवहेलना, दास भाव अपमान।।१।। लोक लाज भयभीत मन, पाले भय मनरोग। दिवस रात्रि मेहनतकशी, भूख प्यास…
भावों का सागर हिंदी - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भावों का सागर है हिंदी सागर में डुबकी लगा जाओ तुम गीत नया फिर गा जाओ, सरसों के खेतों में जब तुम मिल जाती हो धीरे से पीली किरणें लहर…
आखिर क्यों - कविता - रमाकांत सोनी
ना जाने कितनी आँधियाँ आई, जाने कितने ओले बरसे, कितने तूफ़ानों ने रुख़ किया, मेरी ओर आखिर क्यों? ना जाने क्यों ईश्वर परीक्षा लेता है, धी…
चुप रहती है शमा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
लोगों के मुँह से हमने हैं सुना जल मरता है परवाना चुप रहती है शमा। न वो प्यार रहा न रही वो प्रीत वफ़ाई, हर दीवाना लैला मे हैं रमा। बसा क…
नीला आसमान - गीत - संजय राजभर "समित"
नम्र होकर, ऊँचा उठो, करो सबका सम्मान। दूर क्षितिज से कहता है, यह नीला आसमान।। सबल भावना परहित की ह्रदय में रखना साज, सम भाव प्रकृति दु…
भारत की बिन्दी - कविता - विनय विश्वा
मैं हिन्दी हूँ जननी जन्मभूमि मातृभाषा हूँ खड़ी बोली खड़ी होकर मर्यादित, अविचल आधार हूँ मैं भारत का श्रृंगार हूँ। इतिहास से लेकर अब तक…
साहस व बुद्धिमत्ता का सृजन करती हैं समस्याएं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जब तक मनुष्य है उसके पास चिंतन है, विचार है, तब तक समस्याएं तो रहेंगी ही। यदि व्यक्ति गहरी नींद में सो जाये, चिंतन बंद हो जाए प्रलय हो…
गुरु महिमा है अतिगहन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मातु पिता भाई समा, मीत प्रीत गुरु होय। सदाचार परहित विनत, समरसता गुरु सोय।।१।। लोभ मोह मद झूठ को, अन्तर्मन तज धीर। त्याग शील गुण …
आओ मिलकर साथ चले - कविता - नीरज सिंह कर्दम
कुछ दूर तुम चलो कुछ दूर हम चले, मिलकर ये दूरियाँ तय हो जाएँगी। कुछ बोझा तुम उठाओं, कुछ हम उठाएँ, ये बोझा भी कम हो जाएगा। कुछ तुम कहो, …