संदेश
सुनो सबकी करो अपने मन की - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
इस उपरोक्त लोकोक्ति (मुहावरे) का अर्थ कितना सीधा एवं सरल है ना! कि हमें बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए पर हमारे मन को जो अच्छा लगे उसी क…
लता मंगेशकर - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जब कभी मुझे जीवन की अद्भुत और अलहदा अनूभूति ने भाव-विभोर किया मुझे उस आवाज़ का आलिंगन महसूस हुआ। जब कभी दुख की काहिली सी परछाई ने मेरे…
बसंत हमारी आत्मा का गीत और मन के सुरों की वीणा है - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जनवरी का महीना था ज़मीन से उठता कुहासा मेरे घर के आसपास विस्तीर्ण फैले हुए गन्ने के खेतों पर एक वितान सा बुनकर मेरे भीतर न जाने कहीं स…
समय धारा प्रवाह बहती नदी है - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
समय धारा प्रवाह बहती हुई अविरल नदी है जिसकी नियति बहना है जो किसी के लिए नहीं ठहरती है। हाँ! विभिन्न कालखंडों में विभाजित, विविध घाटों…
आन-बान और शान की प्रतीक हैं टोपियाँ - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली | टोपियों के बारे में जानकारी
सर्द मौसम है कभी बादल सूर्य को आग़ोश में ले लेते हैं कभी सूरज देवता बादलों को पछाड़कर धूप फेंकते यहाँ वहाँ नज़र आ जाते हैं, कभी पेड़ो क…
कण्वाश्रम - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
हिमालय के दक्षिण में, समुद्र के उत्तर में, भारत वर्ष है जहाँ भारत के वंशज रहते हैं। संभवतः मैं उसी जगह पर खड़ी हूँ जहाँ हस्तिनापुर के र…
इगास पर्व उत्तराखंड - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
"भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू" इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए,भैलों खेलते, गोल-घेरे मे…
आस्था का महापर्व छठ - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
“पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया बरत तोहार। करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक ग़लती हमार।” “घरे घरे होता माई के बरतिया...” दीपावली बितते-बितते…
छठ पर्व - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, शृंगार-विन्यास में व्रतधारी स्त्रियाँ दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की…
रावण, ज्ञान और अधर्म - लेख - सिद्धार्थ 'सोहम'
रावण, लंकेश, दशानन इत्यादि नामों से प्रसिद्ध ऋषि पुलस्त्य का वंशज, वेदांग का ज्ञाता, भक्ति और शक्ति में लीन, परम प्रतापवान नीति पारंगत…
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