संदेश
अपनापन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खोता जीवन सुख अपनापन, वह स्वार्थ तिमिर खो जाता है। कहँ वासन्तिक मधुमास मिलन, पतझड़ अहसास दिलाता है। भौतिक सुख साधन लिप्त मनुज,अपनापन क…
तेल की कमी में बाती - कविता - रोहित सैनी
जैसे मौत आती है; और... "है" का "था" हो जाता है! दीप आँधियों में एकदम से बुझ जाते हैं! तेल की कमी में बाती... टिमटि…
पति-पत्नी - कविता - विजय कुमार सिन्हा
दो अनजाने परिवारों के बच्चे बंधते हैं एक साथ परिणय सूत्र में परिणय सूत्र में बंधते ही हो जाते हैं जीवन भर के लिए एक दूसरे के लिए। और …
साला का महत्व - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ उस घर में पहले से था एक जमाई रिश्ते में था वह मेरा भाई। एक दिन मैंने उससे कहा– तुम तो अनुभवी हो ससुराल …
नमक - कहानी - कुमुद शर्मा 'काशवी'
नलिनी एक सुघड़, सुशील घर व बाहर के कामों में पारंगत एक समझदार पढ़ी लिखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी लड़की थी। परिवार भी ऐसा जहाँ सभी स…
रिश्तों की डोर - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जन्म से मृत्यु तक, इंसान बँधा है रिश्तों की डोर में। रिश्तों की डोर बहुआयामी होती है। मात-पिता, भाई-बहन, दादा दादी इन रिश्तों को ख़ून …
आत्मीयता की डोर - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
तुझसे हैं मेरे बख़्त का रिश्ता, तू बस सा गया हैं मेरे दिल-ओ-तसब्बुरात में, प्रकति के घर जब सुबह पैदा होती हैं तेरे प्रेम के आँचल में क…